ब्रेस्ट कैंसर पेशेंट (पार्ट 4): सीमा के खूबसूरत बालों का किस्सा 

by Team Onco
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आप इस कहानी के पिछले भागों को यहाँ पढ़ सकते हैं: भाग 1, भाग 2 और भाग 3.

जब सीमा अपनी सर्जरी के एक हफ्ते बाद अस्पताल लौटी, तो पैथोलॉजी रिपोर्ट आनी बाकी थी। रिपोर्ट में उन्हें पता चला कि उनका कैंसर दो लिम्फ नोड्स में फैल चुका है, जिसके लिए उन्हें कीमोथेरेपी और रेडिएशन थेरेपी जारी रखनी होगी। जैसा कि सीमा की पैथोलॉजी रिपोर्ट में एस्ट्रोजेन और प्रोजेस्टरोन रिसेप्टर पाॅजिटिव स्टेटस में पाया गया। जिसका मतलब है कि उनका ट्यूमर इन हार्मोनों की उपस्थिति में बढ़ रहा है। इसके प्रभाव को रोकने के लिए सीमा को दवा लेनी पड़ती थी (आमतौर पर युवा रोगियों के लिए टैमोक्सीफेन का उपयोग किया जाता है) जो कैंसर की पुनरावृत्ति को रोकने के लिए एस्ट्रोजन और प्रोजेस्टरोन हार्मोन के प्रभावों को रोकती है। एक बार जब सीमा की कीमोथेरेपी साइकल पूरी होे जाएगी। तो उनकी एंटी-एस्ट्रोजन थेरेपी शुरू होगी। जहां डॉक्टर उन्हें टेमोक्सीफेन टैबलेट देंगे। जिसका सेवन उन्हें अगले 5 वर्षों तक रोजाना करना होगा। टेमोक्सीफेन आमतौर पर सुरक्षित है और इसके कुछ सामान्य दुष्प्रभाव हो सकते हैं। 

सीमा को अब समझ आ गया था कि उसका इलाज कुछ और महीनों तक चलेगा। इस बात ने सीमा को और ज्यादा परेशान कर दिया कि अब लंबे समय तक उन्हें अस्पतालों के चक्कर लगाने पड़ेंगे।

सर्जरी के दो हफ्ते बाद, सीमा की कीमोथेरेपी शुरू हुई। उन्हें एड्रियामाइसिन (Adriamycin), और साइक्लोफॉस्फेमाइड (Cyclophosphamide) (AC)2, डोज का संयोजन आहार निर्धारित किया गया था। उसके बाद टेक्सेन की चार साइकल थी।

डॉक्टर ने उन्हें कीमोथेरेपी उपचार के बारे में बताया। 2 सप्ताह में एक बार (AC) रेजि-मेट की साइकल दी जाएगी। कीमोथेरेपी के प्रत्येक साइकल से पहले, सीमा को सीबीपी (complete blood picture), केएफटी (kidney function test), एलएफटी (liver function tests) जैसी नियमित रक्त जांच से गुजरना पड़ता हैऑन्कोलॉजिस्ट ने उन्हें बताया कि लैब रिपोर्ट नाॅर्मल आने पर ही कीमोथेरेपी की जाएगी। टेस्ट में आई हुई दिक्कतों का पहले उपचार किया जाएगा, जब तक कि रिपोर्ट नाॅर्मल नहीं आ जाती। इसके बाद ही उनका कैंसर का इलाज शुरू किया जाएगा। यदि इस तरह की कोई समस्या आती है तो उनके इलाज में देरी हो सकती है। ऑन्कोलॉजिस्ट ने भी कीमोथेरेपी से पहले सीमा के हृदय की जांच करने के लिए एक बेसलाइन इकोकार्डियोग्राफी टेस्ट की सलाह दी, क्योंकि एड्रायमाइसिन दवाओं में से एक हृदय के लिए नुकसानदायक होती है, विशेष रूप से उनके लिए, जिनको हार्ट की पहले से दिक्कत है। इसलिए यह जाँचना आवश्यक था कि कहीं सीमा को हृदय की कोई समस्या तो नहीं है।

क्योंकि सीमा की कीमोथेरेपी की आठ साइकल होनी थी, तो डॉक्टर ने उन्हें सुझाव दिया कि उनके लिए कीमोपोर्ट  (Chemo port) एक बेहतर विकल्प होगा, जिसमें इजेंक्शन या इंफयूजन देने से बड़ी नसों के माध्यम से कीमोथेरेपी की दवा को सीधे शरीर में पहुंचाया जाएगा, ऐसे में उन्हें सुई के चुभन वाले दर्द से नहीं गुजरना पड़ेगा।

कीमो पोर्ट एक छोटा उपकरण है, जिसे त्वचा के नीचे बड़ी नसों में सीधे प्रत्यारोपित किया जाता है, ताकि सीधे पोर्ट के माध्यम से कीमोथेरेपी या किसी अन्य IV दवाओं को शरीर में पहुंचाया जा सके। डॉक्टर ने उन्हें समझाया कि यह एक सरल प्रक्रिया है, जिसमें लोकल एनेसथिसिया (शरीर के उस भाग को सुन्न करके) दिया जाता है, ताकि सीमा को ज्यादा परेशानी न हो। कीमो पोर्ट डालने की प्रक्रिया को पूरा करने में इसमें एक घंटे से अधिक का समय लगेगा। डॉक्टर ने सीमा को कहा “अगर आप कीमो पोर्ट नहीं चाहते हैं, तो भी कोई दिक्कत नहीं है, हम हर साइकल में सीमा के लिए इंट्रावेनस प्रवेशिनी प्रक्रिया अपना सकते हैं।” 

सीमा ने कुछ देर सोचा और उन्होंने कीमोपोर्ट लेने का फैसला किया।

कीमोथेरेपी शुरु होने से एक दिन पहले, सीमा को कीमोपोर्ट इंसर्शन के लिए अस्पताल जाना पड़ा, यह एक दिन की प्रक्रिया थी, जिसमें पोर्ट को एक साधारण प्रक्रिया के जरिए लोकल एनेसथिसिया की मदद से ऊपरी छाती पर कॉलर बोन के नीचे लगाया गया, जैसा कि उन्हें पहले ही डाॅक्टर ने बताया था। इस प्रक्रिया में कुछ ही घंटे लगे।

अब सीमा को उनकी कीमोथेरेपी की दवाएँ नस के बजाय सीधे पोर्ट में पहुँचाई जा सकती हैं। ऐसे में अब उन्हें सुई के चुभन वाले दर्द से गुजरने की आवश्यकता नहीं होगी। कीमो दवाओं के अलावा, अन्य दवाएँ भी इसके माध्यम से पहुँचाई जा सकती हैं।

सीमा ने अगले कुछ हफ्तों के लिए हर सप्ताह कम वक्त तक काम करने के बारे में अपनी कंपनी के एचआर से बात की। वह हैरान थी कि उन्होंने उस समय में उनकी कितनी मदद की। कंपनी की तरफ से उन्हें सप्ताह में केवल तीन दिन काम करने की अनुमति मिल गई। इस तरह वह कीमोथेरेपी से गुजरते हुए काम करना जारी रख सकती थी।       

Onco.com के केयर मैनेजर ने सीमा के इलाज की प्रक्रिया को आगे बढ़ाया।

“ऑन्कोलॉजिस्ट ने एड्रियामाइसिन और साइक्लोफॉस्फेमाइड के साथ कीमोथेरेपी निर्धारित की है।” ये दवाएं बालों के झड़ने, उल्टी, मुंह के घाव, भूख में कमी, झनझनाहट, हाथों-पैरों का सुन्न होना व थकावट जैसे कुछ दुष्प्रभाव पैदा कर सकती हैं। कभी-कभी इससे दस्त भी हो सकते हैं।

“बस आपको इतना याद रखना है कि ये सब हो सकता है बाकी चिंता की कोई बात नहीं है। इसके दुष्प्रभाव अस्थायी हैं और कीमोथेरेपी खत्म होने के बाद चले जाएंगे। कीमोथेरेपी के इन दुष्प्रभावों को कुछ दवाओं के सेवन की मदद से ठीक किया या रोका भी जा सकता है, जो आपके डॉक्टर द्वारा निर्धारित की जाएगी। मैं इस प्रक्रिया में आपको गाइड करुंगा, यदि जरूरत पड़ी तो हमारे ऑन्कोलॉजिस्ट भी आपकी मदद करेंगे।”

सीमा को उम्मीद थी कि दुष्प्रभाव बहुत गंभीर नहीं होंगे। वह घर से काम कर लेंगी और इसलिए वह अपने काम के बीच में आराम कर सकती हैं।

दुष्प्रभावों में उन्हें सबसे ज्यादा डर बालों के झड़ने का था। उनके काफी कम उम्र से ही काफी लंबे बाल थे। उनकी माँ हर रविवार उनके बालों में तेल लगाने, धोने और उसके लंबे, काले बालों को सुखाने में बिताया करती थी। उनके जीवन का ऐसा एक भी पड़ाव नहीं था जब उनके लंबे बाल न होे। स्कूल और कॉलेज में उनकी सहेलियों ने उनके खूबसूरत बालों को देखकर लंबे बाल रखे थे, और वे अक्सर उनसे बालों को लंबा करने के लिए सुझाव माँगा करती थी।

अब, अपने लंबे बालों को झड़ता देखना सीमा के लिए बहुत दुखदायी होगा। इसलिए उन्होंने कीमोथेरेपी शुरू करने से पहले ही बालों को छोटे करने का फैसला किया। यह उनके लिए एक बहादुरी की बात थी, लेकिन वह ऐसा इसलिए करना चाहती थी, क्योंकि वह हर दिन अपने बालों को तकिए पर, कंघी और फर्श पर गिरा हुआ नहीं देख सकती थी।

अगले आठ हफ्तों के लिए, सीमा और उनके पति को दो सप्ताह में एक बार अस्पताल में कीमोथेरेपी के चार साइकल को पूरा करने के लिए जाना पड़ा। वे सुबह अस्पताल जाते थे और शाम तक घर लौट आते थे।

हर बार अस्पताल से घर लौटने के बाद सीमा अगले 24 घंटे तक बिस्तर पर रहती थी। उन्हें काफी थकान होती थी और उनके शरीर को आराम करने की जरूरत थी। कुछ वक्त के बाद उनमें धीरे-धीरे ताकत आई और वह अपने दैनिक दिनचर्या और ऑफिस के काम के साथ अपने बेटे को भी वक्त देने लगी।

उनके मतली और उल्टी की समस्या भी दो से तीन दिनों के बाद कम हो गई। यदि यह समस्या ज्यादा बढ़ जाती, तो सीमा अपने ऑन्कोलॉजिस्ट द्वारा निर्धारित टैबलेट का सेवन कर लेती।

केयर मैनेजर ने onco.com से सीमा की प्राथमिकताओं के आधार पर न्यूट्रिशनिस्ट द्वारा तैयार किया गया एक व्यापक उच्च-प्रोटीन आहार योजना उन्हें दी। सीमा ने इस आहार योजना का पालन किया और केवल घर का बना खाना ही खाया। रोहन उन्हें भोजन के बीच में ताजे फल और सलाद भी देते रहे। वह हर समय अपने साथ पानी की एक बोतल रखती थी, ताकि वह वक्त-वक्त पर पानी का सेवन करती रहें।

ज्यादातर दिन, वह कुछ भी करने की हिम्मत नहीं जुटा पाती थी और बहुत थका हुआ महसूस करती थी। लेकिन जब उनमें थोड़ी हिम्मत आने लगी, तो वह रोहन और उसके बेटे के साथ पार्क भी जाया करती थी। सूरज की रोशनी और त्वचा पर हल्की हवा लगने से उन्हें अच्छा महसूस होता था।

जब भी वह बाहर जाती थी, तो वह अपने सिर को चारों ओर एक दुपट्टे से ढक लेती थी, ताकि कोई भी गायब बालों को न देख सके। ऐसा नहीं था कि वह अपनी बीमारी को छिपाना चाहती थी, लेकिन वह इस समय किसी की हमदर्दी नहीं लेना चाहती थी।

यहां तक कि उसके रिश्तेदारों ने भी जब उसकी बीमारी के बारे में सुना था, केवल सहानुभूति दी थी। “बहुत बुरा हुआ, इतनी कम उम्र में!” या “अब सब कुछ भगवान के हाथों में है” ऐसी कुछ सामान्य बातें थी जो सीमा हमेशा उनकी तरफ से सुना करती थी। वह यह नहीं समझ पा रही थी कि सभी ने ऐसा क्यों मान लिया है कि वह मरने वाली है। जबकि वह उनमें से अधिकांश की तुलना में काफी स्वस्थ थी।

कभी-कभी ऐसी बातें उन्हें परेशान कर देती थी और वह रात को सो नहीं पाती थी। रोहन ने सीमा को समझाया और उन्हें ध्यान का अभ्यास करने की सलाह दी, ताकि वह अपने दिमाग को शांत कर नकारात्मक विचारों से खुद को दूर रख सके।

शुरू में, सीमा को ध्यान करना पसंद नहीं था, लेकिन एक हफ्ते कोशिश के बाद, उन्हें धीरे-धीरे काफी आराम मिलने लगा। उन्होंने महसूस किया कि उसकी मांसपेशियों में तनाव कम था और वह रात में बेहतर ढंग से सो पा रही थी। तब से, वह रोज़ाना ध्यान करती थी, और इसे उन्होंने अपने दिनचर्या का हिस्सा बना लिया था। 

कीमो शुरू होने के लगभग पंद्रह दिनों के भीतर, सीमा इस दिनचर्या की आदी हो गई। वह जानती थी कि वह कब अधिक थकावट महसूस करेगी और उनमें कब ऊर्जा होगी। वह अपने ऑफिस के काम को समय पर पूरा करने में सक्षम थी और यहां तक कि अपने बेटे के साथ शाम को खेलती भी थी।

केयर मैनेजर समय-समय पर उनकी सेहत का हाल जानने के लिए उन्हें संपर्क करते रहते थे। उन्होंने सर्जरी के बाद लिम्फेडेमा (हाथों में सूजन) को रोकने के लिए उनके हाथ के व्यायाम को जारी रखने के लिए भी सीमा को याद दिलाया।

जब वह ज्यादा थकान महसूस करती और उनका कुछ खाने का मन नहीं करता, तो रोहन उन्हें सूप बना कर पीला देते। जिनमें से नींबू धनिया का सूप उनका सबसे पसंदीदा था, क्योंकि यह कुछ समय के लिए मतली को रोकने में मददगार होता है।

कुछ दिन वह बहुत थका हुआ महसूस करती थी और उनका कुछ भी करने का मन नहीं होता था। लेकिन वह खुद को याद दिलाती रहती थी कि यह उनके जीवन का एक अस्थायी दौर है। उन्हें सबसे अच्छी चिकित्सा देखभाल मिल रही है और वह निश्चित रूप से कैंसर को हरा देगी। उन्हें केवल अच्छी तरह से खाने और अच्छी नींद लेने पर ध्यान देने की जरूरत है। समय के साथ, उसका शरीर ठीक हो जाएगा और फिर वह अपने बेटे पर पूरा ध्यान दे सकती है जिसके वह हकदार हैं।

ऐसे में सीमा ने अपने मन को सकारात्मक बातों से, और अपने पेट को पौष्टिक भोजन से भर दिया। वह जानती थी कि दवाई उसके शरीर के अंदर काम कर रहीे है, और उन्हें यह लड़ाई जीतने के लिए अपने दिमाग पर काम करना होगा।

जैसा कि अब सीमा की कीमोथेरेपी की सभी 8 साइकल पूरी होने के करीब थी, वह और ज्यादा सकारात्मक महसूस कर रही थी, क्योंकि उनका बुरा वक्त खत्म हो रहा था और वह जल्द ही अपने उपचार के अंतिम चरण पर थी। इसको लेकर उनके मन में और भी सवाल आने लगे, जिनका जवाब पाने में सीमा को onco.com के केयर मैनेजर से हर संभव मदद मिली। केयर मैनेजर ने विकिरण उपचार (Radiation Therapy) के बारे में जानकारी ब्लॉग और वीडियो साझा की। अब वह कैंसर के खिलाफ अपना अगला कोर्स शुरू करने के लिए तैयार थी। 

सीमा के लिए इस कैंसर के सफर में और क्या बाकी  है? क्या वह इसे पार कर पाएंगी?

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