ल्यूकेमिया: पढ़ें कैंसर को बिंदास कहने वाली मीनाक्षी की कहानी

by Team Onco
1160 views

वो लम्हा ऐसा था जब अचानक से आंखों के आगे रील की तरह पूरी फिल्म-सी चलने लगी। मीनाक्षी जो महज़ 20 साल की हैं, जिन्होंने अपना करियर शुरू ही किया था, उन्हें नहीं मालूम था कि जिंदगी के रास्ते में उन्हें ऐसे खतरनाक मोड़ से रूबरू होना पड़ेगा। 

हालांकि, कैंसर… जैसी बीमारी को बिंदास बोलने वाले भी आपको कम ही मिलेंगे। उन कुछ खास लोगों में राजस्थान के रेवाड़ी की रहने वाली मीनाक्षी चौधरी भी हैं। 

सबसे पहले, मीनाक्षी के बारे में आप जो पहली चीज नोटिस करेंगे वो हैं उनकी स्माइल। जो उनके आत्मविश्वास को दर्शाती है और किस तरह से सकारात्मक रहकर वह अपने कैंसर के बारे में खुलकर बात करती हैं। एक मिलनसार व्यक्तित्व वाली होने के साथ-साथ वह अपने व्यवहार से लोगों को अपनी ओर आकर्षित करती हैं।

cancer patient story

20 साल की उम्र में एक जूनियर ट्रेनी इंजीनियर के तौर पर काम करने वाली मीनाक्षी अपने हर वीकएंड को काफी बेहतर तरीके से एंजाय करती हैं। वह अपनी लाइफ में काफी खुश थी और उनके परिवार को उन पर गर्व था।

लेकिन साल 2019 में पलक झपकते ही उनके जीवन में सब कुछ बदल गया। पिछले कई साल बेहतर तरीके से निकालने वाली मीनाक्षी के जीवन में एक नाम और जुड़ गया, कैंसर। साल के अंत में उन्हें ल्यूकेमिया के बारे में पता चला। किसी ऐसे व्यक्ति के लिए जिसे अब तक कोई बड़ी बीमारी नहीं थी, उन्हें कैंसर हो जाना काफी अवास्तविक था।

लक्षणों की शुरूआत

onco.com से बात करते हुए मीनाक्षी ने बताया कि काम के दौरान वह ऑफिस में काफी काफी चिड़चिड़ा और थका हुआ महसूस करने लगी थी। एक खुश मिजाज़ आचरण वाली मीनाक्षी को हर बात पर गुस्सा आने लगा था। कुछ वक्त उन्हें लगा कि ये सब उन्हें काम की वजह से हो सकता है, या लंबी शिफ्ट के कारण या शायद वह घर को मिस रही थी। लेकिन अंदर से वह जानती थी कि इन सभी बातों में से कुछ भी सही नहीं है।

कुछ वक्त के बाद वह खाना स्किप करने लगी। उन्हें भूख काफी कम लगती थी, उनके साथ रह रहे दोस्त ये सोचते थे, कि वे काम की वजह से थके रहती हैं, इसलिए खाना नहीं बनाती। ऐसे में उनके दोस्त ही उनका खाना बनाने लगे। लेकिन, मीनाक्षी जब भी खाना बनाती तो उनका जी मचलाता था।

ये कुछ अजीबोगरीब लक्षण थे, लेकिन इतने बड़े भी नहीं कि उन्हें अस्पताल जाना पड़ें। हालांकि, एक सप्ताह के बाद उन्हें अचानक पेट के बाईं ओर अचानक दर्द महसूस हुआ। बढ़े हुए प्लीहा (spleen)को छोड़कर, स्कैन में ज्यादा खुलासा नहीं हुआ।

डॉक्टर ने मीनाक्षी से कहा कि उन्हें शायद किसी तरह का संक्रमण है, हालांकि यह स्पष्ट नहीं था कि संक्रमण क्या था। तब तक मीनाक्षी काफी डर गई थी। उन्होंने कुछ महीने पहले ही अपनी उम्र के चचेरे भाई को खोया था। इसलिए वह जल्दी से जल्दी अपने परिवार के पास वापस चली गई। उन्होंने इस बीच ब्लड सैंपल का इंतजार करने की बजाय राजस्थान के कोटा घर वापस जाने का फैसला लिया।

ट्रेन का वो यादगार सफर

ट्रेन से अपने घर वापस जाने में उन्हें पंद्रह घंटे लगे। उनके दोस्तों और साथियों ने उन्हें ट्रेन पकड़ने में मदद की। वह यात्रा करने के लिए बहुत अस्वस्थ थी लेकिन उसे अपने परिवार के पास वापस जाना चाहती थी।

अब तक उन्हें कई बार उल्टी हो चुकी थी, वह जो कुछ भी खा रही थी, वह सीधा बाहर आ रहा था। इसलिए उन्होंने ट्रेन में तरल पदार्थों का सेवन किया। फ्रूट जूस साथ में लिए अकेली साहस के साथ, मीनाक्षी ने अपने दोस्तों को अलविदा कह दिया, जिनमें से एक ने उनकी ब्लड टेस्ट रिपोर्ट भी लेने का वादा किया था।

स्टेशन से निकलने के कुछ ही घंटों के भीतर, उन्हें एक फोन आया। लेकिन खराब नेटवर्क और खुद के स्वास्थ्य के चलते वह ठीक से कुछ सुन नहीं पायी। उन्हें बस इतना समझ आ रहा था कि उन्हें उनका दोस्त अगले स्टेशन पर उतर जाने और वापस आने के लिए कह रहा था। उन्हें लग रहा था कि वह यात्रा करने के लिए स्वस्थ नहीं हैं।

मीनाक्षी अपने परिवार के पास घर जाना चाहती थी। इसलिए उन्होंने वापस आने से मना कर दिया और अपने दोस्त को ब्लड रिपोर्ट भेजने के लिए कहा। पहले तो उनके दोस्त ने रिपोर्ट देने से मना कर दिया, लेकिन मीनाक्षी के जोर देने पर उन्हें रिपोर्ट भेज दी।

रिपोर्ट में मीनाक्षी को ल्यूकेमिया होने की बात सामने आई, जो एक प्रकार का ब्लड कैंसर है। रिपोर्ट देखकर मीनाक्षी को अब कुछ भी समझ नहीं आ रहा था। वह रिपोर्ट पर किसी प्रकार की प्रतिक्रिया भी नहीं दे पा रही थी। उन्हें उसी लम्हा पूरी फिल्म की तरह अपनी पूरी जिंदगी सामने नज़र आने लगी, उन्हें लग रहा था कि अब सब कुछ खत्म हो जाएगा।

अपने घर से बेहतर सुकून कहीं नहीं

मीनाक्षी जानती थी कि ब्लड रिपोर्ट बिल्कुल सही होगी। लैब प्रोसेस को पूरा किए बना, या समझे बिना कोई भी कैंसर की बात नहीं लिख सकता। फिर भी, उन्हें उम्मीद थी कि यह सब उस समय की तुलना में बेहतर हो जाए।

इस खतरनाक बीमारी का सामना करते हुए, मीनाक्षी को लगा कि जो भी होगा देखा जाएगा। जब वह घर वापस आई, तो उसके परिवार ने उसे मजबूत महसूस कराया, भले ही वे खुद उनके निदान की खबर से परेशान थे।

उनके घरवालों ने इस उम्मीद में दोबारा टेस्ट करवाया कि शायद इस बार एक अलग परिणाम सामने आ सकता है। लेकिन दूसरी रिपोर्ट भी वहीं आई।

cancer story

कोटा में कैंसर के इलाज के लिए अच्छे विकल्प नहीं मिलने पर मीनाक्षी के परिवार ने जयपुर जाने का फैसला किया। डॉक्टर के परामर्श, अतिरिक्त प्रक्रियाओं और खुद उपचार के लिए उन्हें कोटा से जयपुर की यह यात्रा कई बार करनी पड़ती थी।

ल्यूकेमिया के दौरान उन्हें कई अन्य परेशानियों का सामना भी करना पड़ा। जिनका इलाज कैंसर के दौरान और दर्द भरा था। 

जब उसे सर्जरी के लिए भर्ती कराया गया, तो किसी को भी उनसे मिलने की अनुमति नहीं थी। ऐसा इसलिए था क्योंकि उसकी इम्यूनिटी बहुत कम थी, बाहर के लोगों से उन्हें संक्रमण का जोखिम था। इसलिए किसी भी प्रकार का समर्थन और मनोरंजन उनके लिए अपने फोन तक ही सीमित था। 

मीनाक्षी के परिवार का जयपुर में कोई दोस्त या परिवार नहीं था, जहां इलाज चल रहा था। फिर भी वे नेटवर्क बनाने में कामयाब रहे और उन्हें वहां जो कुछ भी चाहिए, वह मिल गया। अपने कैंसर के सफर के दौरान मीनाक्षी अपने भाई की कर्जदार हैं। जिन्होंने राखी के वचन का निभाते हुए, सबसे कठिन समय में उनका साथ दिया। उन्हें अनगिनत बार खून चढ़ाने की जरूरत थी। हर बार वे समय पर खून खोजने में कामयाब रहे।

इस बीच, मीनाक्षी का परिवार भी कई रूपों में परेशानियों का सामना कर रहा था, इस दौरान उनकी माँ बीमार पड़ गई और उसे अस्पताल में भर्ती कराया गया। एक समय ऐसा भी आया जब मीनाक्षी रोगी होने के साथ-साथ अपनी मां की देखभाल कर्ता भी बन गई। परिवार में सभी ने बारी-बारी से एक-दूसरे को स्वास्थ्य रखने के लिए साथ दिया।

यह भी पढ़ें : कैंसर के इलाज के दौरान गरीबों का सहारा बनीं आंचल शर्मा, पढ़ें पूरी कहानी     

किसी की मदद करने के लिए, उसका करीबी होना ही जरूरी नहीं !

कैंसर का सफरः अपने जीवन की कहानी के एकमात्र लेखक हम खुद हैं

मेरे कैंसर का सफरः ‘द फ्लाइंग सिद्धार्थ’

साल 2020 कोरोनावायरस 

साल 2020 में जब कोरोनावायरस लोगों की सबसे बड़ी परेशानियों में से एक था, तब मीनाक्षी की मुसीबतें और बढ़ने लगी। कैंसर के मरीज़ों को आम तौर पर कई तरह परीक्षणों से गुज़रना पड़ता है। जून 2020 में, मीनाक्षी को एक नियमित कैंसर प्रक्रिया के लिए अस्पताल में भर्ती होने के लिए एक कोविड रिपोर्ट की आवश्यकता थी। जिसमें उनकी रिपोर्ट पाॅजिटिव आई, तो मीनाक्षी को सबसे बड़े डर का सामना करना पड़ा।

उन्होंने कई बार सुना था कि कैंसर रोगियों को दूसरों की तुलना में कोरोना के अधिक गंभीर परिणाम भुगतने पड़ते हैं। उन्हें लगा कि वह केवल दो या तीन दिन और जीवित रह सकती है।

इस दौरान उन्हें आइसोलेशन वार्ड में रखा गया, जहां कुछ अन्य बुजुर्ग लोग भी थे। वह वार्ड में सबसे स्वस्थ थी, क्योंकि बाकी लोग उम्र में भी काफी बड़े थे और ज्यादा कुछ नहीं कर सकते थे। ऐसे में मीनाक्षी उन चीजों में उनकी मदद करने लगी जो वे खुद से कर पाने में असर्मथ थे। चाहे वह किसी बड़े सज्जन को अपना फोन चार्ज करने में मदद करना हो, या किसी बूढ़ी महिला के साथ बाथरूम जाना हो क्योंकि वह मुश्किल से चल पाती थी, मीनाक्षी ने सभी की हर तरह से मदद की। बदले में, उन्हें इन लोगों का आशीर्वाद मिला और उनके घरों से जो भी फल और जूस आया करता था वह सभी साथ में खाया करते थे।

सबकी सेवा करने के साथ-साथ मीनाक्षी अपने खुद का भी काफी ध्यान रचाती थी, वह अपना के Spo2 और बुखार समय-समय पर चके कियचा करती थी। वह अपना पानी गर्म करती थी और समय पर दवाई लेती थी। वह जानती थी कि उन्हें अपना ख्याल खुद रखना होगा क्योंकि उसका परिवार इस समय उससे मिलने नहीं जा सकता था।

मीनाक्षी का अभी भी इलाज चल रहा है, और संभवतः एक और साल के लिए होगा। कई बार वह पीछे मुड़कर देखती हैं तो सोचती हैं कि कैसे उन्होंने अस्पताल में उन सारी रातों को अकेले गुजारा जब किसी को उससे मिलने की अनुमति नहीं थी। फिर, ऐसे समय होते हैं जब वह आगे देखती है और जानती है कि अगर वह अतीत को संभाल सकती है, तो वह भविष्य को भी संभालना हमारे हाथ में ही है।

cancer story

खुद को प्रेरित रखने और अपने आसपास के लोगों को प्रेरित करने के लिए मीनाक्षी ने ‘BoomBox It is your channel’ नाम से एक यूट्यूब चैनल शुरू किया। वह इस चैनल का उपयोग कैंसर के शुरुआती लक्षणों के बारे में जागरूकता फैलाने और अन्य रोगियों को लड़ने के लिए प्रेरित करने के लिए करती हैं। 

मीनाक्षी बतातीं हैं कि इलाज के दौरान हर बार जब कोई दोस्त उनसे मिलने आया करता था, तो वह काफी अच्छा महसूस किया करती थी। वह कहती हैं, कई लोग कैंसर के मरीज से दूर रहते हैं। उन्हें लगता है कि अगर वे उनके पास जाते हैं तो यह परेशान कर सकता है या रोगी को असहज कर सकता है। लेकिन मेरे अपने अनुभव में, जब मेरे पास कोई भी मिलने आया करता था, तो मैंने हमेशा बेहतर महसूस किया है। उनका कहना है कि हमेशा अपने बीमार दोस्त के पास जाना चाहिए, ऐसे में उन्हें आपकी काफी ज्यादा जरूरत होती है। आप उनसे बात कर सकते हैं या उनकी बात सुन सकते हैं। वे किसी भी तरह से, बेहतर महसूस करेंगे।

इस ब्लॉग को अंग्रेजी में पढ़ने के लिए यहां क्लिक करें

Related Posts

Leave a Comment