बचपन में होने वाली बीमारियों में से कैंसर भी एक है। बच्चे कई अलग-अलग प्रकार के कैंसर से प्रभावित होते हैं, कई बार इसके लक्षण भी सीधे तौर पर दिखाई नहीं देते हैं। आज बच्चों से जुड़े कैंसर के बारे में हम वरिष्ठ सलाहकार, बाल चिकित्सा हेमाटो-ऑन्कोलॉजिस्ट और बीएमटी, नंदिनी हज़ारिका से जानेंगे।
बच्चों और किशोरों में आजकल कैंसर का मुख्य कारण क्या है?
बच्चों और किशोरों में आजकल कैंसर कई कारणों से बढ़ रहा है। आमतौर पर हमारे शरीर में होने वाले जेनेटिक म्यूटेशन के कारण आम कोशिकाएं बढ़ती हैं और खत्म हो जाती हैं। लेकिन जब यह कोशिकाएं बहुत ज्यादा बढ़कर अनियंत्रित हो जाएं तो यह कैंसर का रूप ले लेती हैं। बच्चों या किशोरों के जीन में होने वाले ये बदलाव कभी भी हो सकते हैं। इसका कारण आज भी साफ नहीं हो पाया है। वायरल संक्रमण के कारण भी जेनेटिक म्यूटेशन होता है। कई ऐसे वायरस होते हैं, जो कैंसर का कारण बनते हैं। रेडिएशन एक्स्पोज़र भी इसका एक कारण है। जिनमें एक्स-रे, सीटी स्कैन शामिल हैं। इसी के साथ केमिकल एक्स्पोज़र भी जेनेटिक म्यूटेशन का एक कारण है। हमारी जीवनशैली भी इसमें काफी अहम भूमिका निभाती है। बडे लोगों में सिगरेट, शराब व तंबाकू का सेवन कैंसर का मुख्य कारण है। वहीं मोटापा भी इसमें एक जोखिम कारक है, जो बडे और बच्चों दोनों के लिए कैंसर को बुलावा देता है, यदि कोई बच्चा बचपन में काफी मोटा रहा है, तो आगे चलकर उसे कैंसर होने की संभावना होती है।
बच्चों में आमतौर पर होने वाले कौन-कौन से कैंसर होते हैं ?
जैसे हमारे शरीर के हर अंग में कैंसर हो सकता है, इसी तरह बच्चों में भी कैंसर के कई प्रकार हैं। बच्चों में सबसे आम ब्लड कैंसर होता है, जिसे ल्यूकेमिया के नाम से भी जाना जाता है। इसमें कई प्रकार होते हैं, जिनमें एक्यूट लिम्फोब्लास्टिक ल्यूकेमिया शामिल है। यह दो से दस साल तक के बच्चों में ज्यादा होता है। इसके इलाज की अवधि लंबी होती है, लेकिन लगभग 80 प्रतिशत बच्चे इस बीमारी से ठीक हो सकते हैं। इसके अलावा बच्चों में ब्रेन ट्यूमर हो सकता है। वहीं लिंफोमा भी बच्चों में काफी आम हैं, जिससे गले में गांठ व पेट में गांठ बढ़ जाती है। पांच से कम उम्र के बच्चे किडनी कैंसर का शिकार भी होते हैं, जिसे विल्म्स ट्यूमर भी कहा जाता है। न्यूरोब्लास्टोमा जैसे कैंसर भी एक साल से कम उम्र के बच्चों को होता है लेकिन इससे काफी जल्दी ठीक हुआ जा सकता है। बच्चों में लिवर का कैंसर भी होता है, जिसे हेपाटोब्लास्टोमा कहा जाता है। छोटे बच्चों में आंख का कैंसर भी काफी आम है, जिसे रेटिनोब्लास्टोमा के नाम से जाता है। बच्चों में बोन ट्यूमर भी काफी आम है। बच्चों में होने वाले कैंसर बहुत जल्दी बढते हैं और इलाज की मदद से उन्हें ठीक भी किया जात सकता है।
भारत में बच्चों के कैंसर के लिए उपचार के विकल्प क्या हैं?
बच्चों के कैंसर में आमतौर पर इलाज तीन तरीके से किया जाता है। जिसमें पहला है कीमोथेरेपी, जिसमें नसों के जरिए दवाओं को शरीर में पहुंचाया जाता है। कई बार ओरल दवाओं की मदद से भी इलाज किया जाता है। ज्यादातर बच्चों के कैंसर में कीमोथेरेपी की जरूरत होती है। हो सकता है किसी कैंसर में इलाज की प्रक्रिया में सर्जरी का इस्तेमाल भी किया जाए। जो गांठ को हटाने के लिए इस्तेमाल की जाती है। वहीं रेडिएशन थेरेपी का उपयोग ब्रेन ट्यूमर, लिंफोमा या विल्म्स ट्यूमर जैसे कैंसर के लिए किया जाता है। यदि कैंसर बढ़ जाए तो रेडिएशन थेरेपी की आवश्यकता होती है। आमतौर पर इसका इस्तेमाल कम ही होता है। बच्चों में कैंसर के लिए बोन मैरो ट्रांसप्लांट का इस्तेमाल भी किया जाता है।
बच्चों में ब्लड कैंसर और ब्रेन ट्यूमर के लक्षण क्या हैं ?
ब्लड कैंसर में लगभग तीन हफ़ते से ज्यादा वक्त तक बुखार रहना एक बडा लक्षण है। बुखार के साथ बच्चों का पीला पड जाना, जो खून की कमी के कारण हो सकता है। शरीर लाल या काले धब्बे पडना। दांत, आंख और पेशाब में खून आना इसके लक्षणों में से एक है। पेट का बढना, और हडिडयों में दर्द रहना भी कैंसर का संकेत है।
ब्रेन ट्यूमर में बच्चों को सिर में बहुत दर्द महसूस होता है। जिसके बाद बच्चे को उल्टी होती, जिससे सिर दर्द ठीक हो जाता है। यह लक्षण लंबे वक्त तक रहने पर ब्रेन ट्यूमर की संभावना हो सकती है। ब्रेन ट्यूमर में बच्चों की आंखें भी प्रभावित होती हैं, जिससे उन्हें चलने में परेशानी महसूस होती है।
बच्चों के लिए उपचार के दुष्प्रभाव क्या हैं?
इलाज के दौरान और बाद में बच्चों को कुछ दुष्प्रभावों का सामना करना पडता है। बच्चे इस बड़ों के मुकाबले इस इलाज को काफी अच्छे से सहन कर लेते हैं। एक कैथेटर की बच्चों को दे देते हैं। जिससे मतली की समस्या कम हो जाती है। आमतौर पर दवाओं के चलते बच्चों के सिर से बाल चले जाते हैं। इलाज के दौरान 10 से 12 साल के बच्चों का जीवन काफी प्रभावित होता है। क्योंकि वह इलाज के चलते अपनी पढ़ाई पूरी कर पाते। जिसके लिए उनकी काउंसलिंग की जाती है। उल्टी, मुंह में छाले, बुखार जैसे दुष्प्रभाव लंबे वक्त तक नहीं रहते हैं। कुछ दुष्प्रभाव होते हैं, जो लंबे वक्त के बाद आते हैं, जैसे कि 15 से 20 साल के बाद कुछ दवाओं के कारण दिल की बीमारी होने की संभावना होती है। कुछ दवाओं से बांझपन की समस्या हो सकती है। इन सभी दुष्प्रभावों को ध्यान में रखकर दवाओं का डोज दिया जाता है।
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क्या कैंसर के इलाज के बाद बच्चा एक साधारण जिंदगी जी सकता है?
कैंसर के इलाज के बाद बच्चा एक साधारण जिंदगी जी सकता है। इलाज खत्म होने के छह महीने के बाद थोड़ी सतर्कता बरतनी जरूरी होती है। क्योंकि दवाओं के चलते शरीर की प्रतिरक्षा प्रणाली काफी कमजोर हो जाती है, जिससे संक्रमण का खतरा बढ जाता है। ऐसे में बच्चों को भीड़ में जाने से मना किया जाता है, खान-पान पर ज्यादा ध्यान दिया जाता है।
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