“मैं कुछ अलग नहीं… बाकी लड़कियों की तरह आम ही हूँ।”
ऐसा आंचल अपने आरे में कहती हैं। लेकिन उनके काम के बारे जो भी कोई जानता है, वह सही कहता कि वो किसी फरिश्ते से कम नहीं हैं। कोरोना माहामारी के बीच कई लोग दूसरे गरीब लोगों की मदद के लिए आगे आए। आंचल भी उन्हीं में से एक है। कोविड-19 के दौरान उन्होंने मील्स फॉर हैप्पीनेस फाउंडेशन की स्थापना की और अकेले इस महामारी के दौरान दो लाख भूखे लोगों को खाना खिलाया।
चाहे वह स्कूल जाने वाले गरीब बच्चों हो या फिर दिहाड मज़दूर वर्ग, आंचल ने इस महामारी के वक्त में उन सभी की मदद की। इस वक्त में उन्होंने और उनकी टीम ने यह सुनिश्चित किया कि किसी भी कोविड हॉटस्पॉट में कोई भूखा न रहे।
आंचल कई एनजीओ से जुड़ी हुई हैं। वह स्टैस मैनेजमेंट पर कैंसर रोगियों और कॉर्पोरेट कर्मचारियों को भी प्रशिक्षित करती है। इसके साथ ही वे वेबिनार के जरिए लोगों से बात करती हैं और यदि कभी कोई उनसे बात करना चाहता है तो वे उन्हें मना नहीं करती हैं।
इतनी कम उम्र में आंचल ये सब कैसे मैनेज करती है, यह समझना मुश्किल है। जो बात इसे और भी अविश्वसनीय बनाती है वह ये है कि वे एक स्तन कैंसर सर्वाइवर हैं।
आंचल की एक खास बात ये है कि वे अपनी कमियों को खुले तौर पर स्वीकार करती है। onco.com से बात करते हुए उन्होंने बताया कि घर में पैसों की तंगी के कारण उन्हें नौवीं में ही अपनी पढ़ाई छोड़नी पड़ी थी। उन्होंने अपनी सेहत के साथ-साथ अपने परिवार में काफी बुरा वक्त देखा।
जब आंचल अपनी कहानी सुनाती हैं, तो एक चीज़ पर आपका ध्यान ज़रूर जाएगा। अक्सर लोग अपने कैंसर के सफर में कैसा महसूस कर रहे हैं, इस बारे ज्यादा ध्यान देते हैं, लेकिन आंचल इस बारे में ज्यादा सोचती हैं कि इस वक्त उनके दिमाग में क्या ख्याल आ रहे हैं।
ऐसा नहीं है कि आंचल की कोई फीलिंग्स नहीं है। वास्तव में उसकी फीलिंग्स कभी-कभी इतनी भारी होती हैं कि उनका निपटान वह प्रैटिकल तरीके से करती हैं।
जैसे, जब आंचल को पहली बार स्तन कैंसर का पता चला, तो उन्होंने अपने परिवार को इसके बारे में नहीं बताने का फैसला किया। उनका परिवार उनके छोटे भाई की शादी की तैयारी में लगा हुआ था। साथ ही उनकी बहन की शादी में कुछ परेशानियां चल रही थीं। इस बीच आंचल ही अपने परिवार के पालन पोषण का एकमात्र सहारा थीं। ऐसे वक्त पर किसी को कैंसर जैसी जानलेवा बीमारी हो जाए तो उसकी परेशानी का आलम क्या होगा ये समझना इतना मुश्किल नहीं है।
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कोविड-19 का स्तन कैंसर के उपचार पर प्रभाव
वह जानती थी कि कैंसर होना या न होना उसके नियंत्रण में नहीं है। न रोने या अफसोस करने से कुछ भी बदल जाएगा। आंचल बताती हैं कि एक वक्त में वह रोई भी थी, आखिर है तो इंसान ही। लेकिन अगले ही दिन उन्होंने बस ये सोचा कि उनके बस में अगर कुछ है तो वो है कैंसर का उपचार। जिसकी मदद से ही वह अपने आप को बचा सकती हैं।
उन्होंने अपने हालातों के बारे में डॉक्टर को सब कुछ बताया और उनसे कहा कि उन्हें इलाज अपने काम के साथ ही जारी रखना होगा। इसलिए उन्हें कैनुला के बजाय कीमो पोर्ट लगाया गया। जिससे वह अपने काम को जारी रख पाई।
ऐसा क्यों हुआ, इस बारे में ज्यादा सोचने में समय बर्बाद करने के बजाय आंचल ने अपने डॉक्टर पर भरोसा करते हुए उनकी बातों को सही तरीके से फाॅलो किया।
अपने नियंत्रण में रहने वाली चीजों पर ध्यान केंद्रित करते हुए उन्होंने खुद को नेगेटिव बातों से दूर का पाॅजिटिव चीजों के बारे में सोचा। यहां तक कि जब उनका परिवार उनके कैंसर के इलाज में उनकी कोई मदद नहीं कर सकता था, तब भी उन्होंने इस बात को एक फायदे की तरह ही लिया, क्योंकि वह अब पूरी आजादी के साथ अपने इलाज की योजना बना सकती थी।
कैंसर जैसी बीमारी हो जाने के बाद जहां अधिकांश लोग इस समय में अपने बारे में ज्यादा सोचते हैं वहीं आंचल ने इस वक्त भी अपने बारे में ज्यादा ध्यान न देकर दूसरों के बारे में सोचने का विकल्प चुना।
अपने कैंसर के सफर के दौरान आचंल लोगों को खाना देकर, उन्हें काउंलिंग देकर, या उनकी बात सुनकर कई अन्य तरीकों से मदद करती थी।
अपने रेडिएशन थेरेवी के दौश्रान भी वह अपने शहर के आर्थिक रूप से पिछड़े क्षेत्रों में लोगों के लिए खाने की कमी को पूरा कर रही थी। वह खुद फूड ट्रकों के साथ जाती थी और भोजन तैयार करने और उन्हें बांटने में अपनी टीम की मदद करती थी।
उनका मानना है कि गरीब मासूम बच्चों का इस बुरे वक्त में पेट भरने से बड़ा धर्म और काम कोई नहीं हैं। उन नन्हें – मुन्नों की आंखों की खुशी ही उनके लिए सबसे बड़ा आशीर्वाद है।
आंचन ने इस बीच संक्रमण या अपने स्वास्थ्य के बारे में चिंता नहीं की। उनका मानना था कि जो दूसरों की मदद करता है, उनकी रक्षा भगवान करता है। हालांकि, इस दौरान व्यावहारिक तौर पर आंचल ने यह भी सुनिश्चित किया कि वह और उनकी पूरी टीम सभी सुरक्षा प्रोटोकॉल का पालन करें। इस वक्त सभी ने सेफटी किट पहनी थी और संक्रमण के जोखिम को कम करने के लिए सभी बातों को फाॅलो कर रहे थे।
आंचल को कैंसर के बाद एक तरह से दूसरा जन्म मिला है, जिसके लिए वह भगवान और डाॅक्टर्स की आभारी हैं। उनका मानना है कि कैंसर के बाद उनके जीवन में काफी सुधार आया है।
भोजन की आपूर्ति के वक्त लंबी मेहनत के बाद दिन के अंत में, आँचल को थकान और शरीर में दर्द महसूस हुआ था। आंचल ने किसी के लिए कुछ अच्छा ही किया हैं। वह कहती हैं कि उन बच्चों की खुशी के बदले में उन्हें एक छोटी सी कीमत चुकानी पड़ी, ये थकान और दर्द उनके लिए कुछ भी नहीं था। कम से कम इस माहामारी के दौरान उनकी मदद से कई गरीब लोग भूखे नहीं सोए।
कैंसर के सफर के दौरान अपने बारे में न सोचकर दूसरों की मदद करने वाली आंचल हमें बहुत बड़ी सीख देती हैं। किसी की मदद करने की नियम ही काफी होती है, आपूर्ति अपने आप हो जाती है।
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