जीवन में न हराना ज़रूरी है न ही जीतना ज़रूरी, ये खेल ज़िंदगी का है इसे खेलना ज़रूरी है। महज़ 23 की उम्र में एक नई उमंग के साथ सकारात्मकता को अपनाते हुए ये बातें जयंत कंदोई की है। पूरे भारत में कैंसर जैसी घातक बीमारी को हराने वाले जयंत पहले ऐसे भारतीय हैं, जिन्हें एक नहीं, दो नहीं बल्कि छह बार कैंसर हो चुका है। जयंत पिछले लगभग 8 साल कैंसर जैसी बीमारी से लड़ने में लगा चुके हैं। इस सफर में कई उतार-चढ़ाव देखने के बावजूद आज वह हम सब के बीच एक मिसाल बन कर बैठे हैं।
Onco.com से बात करते हुए जयंत ने बताया कि कैंसर ने साल 2013 में उनकी ज़िंदगी में दस्तक दी। तब वह महज़ 13 साल के थे और दसवीं में पढ़ रहे थे। पढ़ाई में हमेशा अव्वल रहने वाले जयंत ने कैंसर होने के बाद भी अपनी एजुकेशन को प्रभावित नहीं होने दिया। जयंत को 2013 में सबसे पहले होडग्किन लिम्फोमा नाम का कैंसर हुआ, जो कि ब्लड कैंसर का एक रूप है। इस दौरान उन्हें उनके गले के दाएं ओर एक गांठ महसूस हुई, हालांकि इसमें किसी तरह का दर्द नहीं था। एक वक्त ऐसा आया जब ये गांठ काफी ज्यादा दिखने लगी। जिसके बाद इलाज कराने पर उन्हें पता चला कि यह एक कैंसर का रूप ले चुका है। इलाज में जयपुर में ही उनकी सर्जरी की गई और उन्हें कीमोथेरेपी की 12 साइकिल दी गई। साल 2014 तक उनका उपचार पूरा हो चुका था। जयंत को लगा कि वह कैंसरमुक्त हो गए हैं। जिसके बाद उन्होंने जयपुर जाकर, दसवीं की परीक्षा दी और उसमें टाॅप किया।
कुछ महीनों बाद साल 2015 में उन्हें फिर से भगवान महावीर कैंसर अस्पताल में भर्ती कराया गया, यह वहीं अस्पताल था जहां पहले उनका इलाज चला था। इस वक्त जयंत के गले की दूसरी ओर गांठ निकल आई थी। इसके उपचार में उन्हें 60 रेडिएशन थेरेपी दी गई थी। कैंसर से एक बार लड़ने के बाद दोबारा होने पर जयंत को लगा कि शायद अब उनकी परेशानी खत्म हो गई है, लेकिन उनकी ज़िंदगी की किताब में कुछ अलग ही लिखा था।
अपनी आगे की पढ़ाई के लिए जयंत दिल्ली यूनिवर्सिटी में एडमिशन ले चुके थे। जिसके बीच में उन्हें दिल्ली से वापस घर आना पड़ा क्योंकि 2017 में एक बार फिर से कैंसर ने उन्हें जकड़ लिया था। इसके शुरुआत में जयंत को पेट में काफी दर्द महसूस हुआ करता था। पहले दो बार कैंसर से लड़ चुके जयंत के पिताजी अपने बेटे को अकेला नहीं छोड़ना चाहते थे, इसलिए उन्होंने उन्हें दिल्ली से वापस बुला लिया। इस बार उन्हें अग्न्याशय का कैंसर था। जिसके लिए उन्हें ओरल कीमोथेरेपी दी गई। उपचार के दो साल बाद तक वह ठीक रहे।
साल 2019 की शुरुआत में उन्हें एक फिर कैंसर हो गया। जहां उनका पेट का ट्यूमर वापस आ गया था, जिसके लिए एक बार फिर से दिल्ली में उनका इलाज कराया गया, जहां से उन्हें ओरल कीमो पर रखा गया था। किसी तरह से उस वक्त को भी जयंत ने पार कर लिया। बार-बार कैंसर की दस्तक शायद जहां एक मरीज़ को कमज़ोर कर देती वहीं, जयंत के जीवन में यह सब उन्हें और ज्यादा ताकत दे रहा था। इस बीच उन्होंने 2016 में अपना एक स्टार्टअप शुरू किया, अपनी सेहत और कैंसर की लड़ाई के चलते जयंत अपना काम अपने दोस्तों को सौंपकर इलाज के लिए चले जाया करते थे।
साल 2020 के शुरूआत में उनकी राइट ऑक्सिलरी में फिर से कैंसर डिटेक्ट हुआ, इस बीच उनका इलाज अहमदाबाद के गुजरात कैंसर अस्पताल में चल रहा था। मार्च तक जयंत का उपचार पूरा हुआ और इस बीच कोरोना के चलते लाॅकडाउन लग गया, जिस वजह से वह सही तरह से फाॅलो-अप नहीं करा पाएं और शायद इसी कारण साल 2020 के अंत तक एक बार फिर से पेट के निचले हिस्से में उन्हें कैंसर हो गया। जिसके बाद उनका बोन मैरो ट्रांसप्लांट किया गया।
जयंत बताते हैं कि 8 से 9 सालों में उन्हें छह बार कैंसर से जूझना पड़ा और हर बार उनके शरीर के एक नए हिस्से पर असर पड़ा। वह जब-जब बीमार पड़ते थे तो, कुछ रिश्तेदार उनके माता-पिता को सलाह देते थे कि अब वह ठीक नहीं हो पाएंगें, उन्हें अब किसी संस्थान में छोड़ देना चाहिए। सभी को लगता था कि जयंत अब नहीं बच पाएंगे, इसलिए अच्छा यही होगा कि वह सबसे दूर ही रहें।
एक वक्त ऐसा भी था कि जब उनके परिवार को पैसों की तंगी से जूझना पड़ा, हालांकि जयंत के माता-पिता ने कभी हिम्मत नहीं हारी। उनके पिता का कहना था कि, मैं तुम्हें भगवान से भी छीन कर ले आऊंगा। शायद पिता के इन शब्दों ने ही जयंत में कैंसर से लड़ने की और ताकत भर दी थी। इस बीच कई रिश्तेदार या तो सिर्फ उनके परिवार को बेवजह की सलाह दिया करते थे या फिर, उनसे दूरी बनाकर रखते थे, क्योंकि जिस तरह से जयंत के इलाज में इतना पैसा लग रहा था, सभी उनके परिवार की मदद करने से हिचकिचा रहे थे।
आज वक्त बदल गया है, वहीं परिवार है, वहीं जयंत है और वहीं रिश्तेदार, जो अब उन्हें कैंसर मुक्त होने पर मुंह खोले निहार रहे हैं। आज जयंत ऐसे पहले भारतीय हैं, जिन्होंने छह बार कैंसर जैसी घातक बीमारी को मात दी है। डाॅक्टर्स अब भी उन पर रिसर्च कर रहे हैं कि ऐसा कैसे संभव हो पाया। कैंसर के सफर के दौरान जिन लोगों ने जयंत से पल्ला झाड़ना चाहा आज जब वह अपने जीवन में इतना आगे बढ़ चुके हैं, अब वहीं लोग उनकी तारीफ करते हुए उन्हें अपना करीबी बताते हैं। अब वे जयंत से संबंध बनाए रखना चाहते हैं।
जयंत का मानना है कि जीवन की कठिनाई सभी को झेलनी पड़ती है, लेकिन मायने ये रखता है कि आप उस परेशानी का सामना कैसे कर रहे हैं। कैंसर के सफर के दौरान उन्होंने दो स्टार्ट अप खोले, साथ ही उन्होंने कैंसर पर तीन किताबें लिखी जो जल्द ही पब्लिश होने वाली हैं, इस किताब में उन्होंने कई पाॅजिटिव बातें लिखी हैं, जो किसी कैंसर पीड़ित के लिए जानना बहुत ज़रूरी हैं। इसके साथ ही जयंत एक एनजीओ चलाते हैं, जिसका नाम है सिटी स्टार क्लब, जहां वह किसी भी कैंसर पीड़ित और सर्वाइवर की हर संभव मदद करते हैं। जयंत एक मोटिवेशनल स्पीकर होने के साथ-साथ, एमबीए के सेकंड सेमेस्टर के स्टूडेंट हैं, वह काम और पढ़ाई दोनों कर रहे हैं।
14 साल की उम्र से 23 साल तक का सफर बीमारी में निकालने के बावजूद जयंत कभी कैंसर को बुरा नहीं बोलते हैं। इस बीमारी को श्राप समझने वाले लोगों के लिए जयंत एक बहुत बड़ी मिसाल हैं, जिन्होंने इतनी कम उम्र में कैंसर को हराया और आज आगे आकर लोगों को जागरूक करने का काम कर रहे हैं। जयंत के जज्बे के आगे शायद मौत ने भी अपने घुटने टेक दिए, उनके इस सकारात्मक व्यवहार से हम सभी को लाख परेशानियों का सामना करने के बावजूद जीवन जीने की नई सीख मिलती है।
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