हिन्दी

कोलोरेक्टल कैंसर: जोखिम को कैसे करें कम? (reduce risk of colorectal cancer)

कोलोरेक्टल कैंसर एक सामान्य प्रकार का गैस्ट्रोइंटेस्टाइनल कैंसर है जो कोलन या मलाशय (rectum) में किसी भी असामान्य वृद्धि के कारण होता है। कोलन और रेक्टल कैंसर में कई सामान्य विशेषताएं होती हैं और इसलिए, उन्हें कोलोरेक्टल कैंसर के रूप में एक साथ रखा जाता है।                            

विश्व स्तर पर, कोलोरेक्टल कैंसर पुरुषों में तीसरा और महिलाओं में दूसरा सबसे आम कैंसर है। 2018 में, सभी उम्र के पुरुषों और महिलाओं में 1.8 मिलियन से अधिक नए कोलोरेक्टल कैंसर का निदान किया गया। 

कोलोरेक्टल कैंसर

भारत में कोलोरेक्टल कैंसर के मामले पश्चिमी देशों की तुलना में कम हैं। कोलोरेक्टल कैंसर भारत में कैंसर का सातवां सबसे आम प्रकार है। 

Table of Contents

कोलोरेक्टल कैंसर क्या है? (what is colorectal cancer?)

कोलोरेक्टल कैंसर तब होता है जब कोलन या मलाशय को अस्तर करने वाली कोशिकाएं असामान्य रूप से बढ़ने और विभाजित होने लगती हैं, जिसके परिणामस्वरूप ऊतक का एक द्रव्यमान (mass) होता है, जिसे पॉलीप (polyp) के रूप में जाना जाता है। सभी पॉलीप्स कैंसर नहीं होते हैं, लेकिन जो बढ़ते रहते हैं वे कैंसर बन सकते हैं।

इस असामान्य वृद्धि और विभाजन के पीछे के सही कारण का अभी पता नहीं है, लेकिन शोधकर्ताओं का मानना है कि ये कारक भूमिका निभा सकते हैं:

  • आयु
  • परिवार के इतिहास
  • मोटापा
  • रेड मीट का अधिक सेवन
  • धूम्रपान
  • शराब का सेवन
  • कुछ चिकित्सीय स्थितियां 

कोलोरेक्टल कैंसर से जुड़े सबसे आम लक्षण हैं:

  • मल में खून
  • ढीला मल या कब्ज
  • पेट दर्द या ऐंठन
  • थकान
  • पेट ठीक से साफ न हो पाना
  • बिना कारण वजन घटाना

ये लक्षण कई गैस्ट्रोइंटेस्टाइनल चिकित्सा स्थितियों के साथ ओवरलैप होते हैं और इसलिए, ज्यादातर मामलों में कोलोरेक्टल कैंसर का निदान एडवांस स्टेज में किया जाता है। 

शुरुआती स्टेज के दौरान कोलोरेक्टल कैंसर का निदान और प्रबंधन उपचार के परिणामों और जीवन की गुणवत्ता में सुधार करने का सबसे अच्छा तरीका है। इन कैंसर के लिए नियमित जांच के माध्यम से शुरुआत में कोलोरेक्टल कैंसर का पता लगाया जा सकता है। 

कोलोरेक्टल कैंसर के लिए स्क्रीनिंग गाइडलाइन्स (Screening Guidelines for Colorectal Cancer) 

अमेरिकन कैंसर सोसायटी के अनुसार, कोलोरेक्टल कैंसर के औसत जोखिम वाले लोगों को 45 साल की उम्र में स्क्रीनिंग शुरू कर देनी चाहिए। कोलोरेक्टल कैंसर की जांच या तो मल-आधारित परीक्षण (stool-based test) या दृश्य परीक्षण (visual examination) के माध्यम से की जा सकती है। 

अच्छे स्वास्थ्य और जिनके जीने की संभावना ज्यादा होती है, वे लोग 75 वर्ष की आयु तक स्क्रीनिंग जारी रख सकते हैं। यदि 76 से 85 वर्ष की आयु के लोग स्क्रीनिंग जारी रखना चाहते हैं, तो उन्हें डॉक्टर से बात ज़रूर करनी चाहिए।

हालांकि, 85 वर्ष से अधिक आयु का व्यक्ति स्क्रीनिंग के लिए पात्र नहीं है। एक औसत जोखिम वाले व्यक्ति के पास कोलोरेक्टल कैंसर का व्यक्तिगत या पारिवारिक इतिहास नहीं होता है, क्रॉन या अल्सरेटिव कोलाइटिस जैसे सूजन आंत्र रोग का व्यक्तिगत इतिहास होता है।

कोलोरेक्टल कैंसर के लिए स्क्रीनिंग के प्रकार (Types of Screening for Colorectal Cancer)

कोलोरेक्टल कैंसर की जांच के लिए निम्नलिखित टेस्ट की सिफारिश की जाती है:

मल-आधारित परीक्षण (Stool-based tests) 

ये गैर-आक्रामक परीक्षण हैं, जिनमें मल का एक नमूना एकत्र किया जाता है और प्रयोगशाला में कोलोरेक्टल कैंसर के लक्षण देखने के लिए जांच की जाती है, जैसे मल में ब्लड।

स्टूल टेस्ट को निम्न प्रकारों में बांटा गया है: 

फीकल इम्यूनोकेमिकल टेस्ट (FIT) या इम्यूनोकेमिकल फीकल ऑकल्ट ब्लड टेस्ट (iFOBT): इस टेस्ट में स्टूल में गुप्त (छिपे हुए) ब्लड की उपस्थिति का परीक्षण किया जाता है। मल में ब्लड पॉलीप्स या कैंसर का संकेत दे सकता है। यह टेस्ट सालाना किया जाना चाहिए।

ग्वाइक-बेस्ड फेकल ऑकल्ट ब्लड टेस्ट (gFOBT): इस टेस्ट में मल के नमूने का परीक्षण एक विशेष कार्ड पर किया जाता है, जिस पर ग्वाएक (पौधे से प्राप्त पदार्थ) की परत चढ़ी होती है। अगर, मल के नमूने में खून है तो कार्ड का रंग बदल जाता है। यह टेस्ट सालाना किया जाना चाहिए। 

स्टूल डीएनए टेस्ट: यह टेस्ट स्टूल सैंपल की कोशिकाओं में डीएनए परिवर्तन की पहचान करता है और कोलन कैंसर या पॉलीप्स से जुड़े असामान्य डीएनए की तलाश करता है। परीक्षण मल में छिपे हुए ब्लड का भी पता लगाता है, जो कैंसर की उपस्थिति का संकेत दे सकता है। यह टेस्ट हर 3 साल में किया जाना चाहिए।

डायरेक्ट विज़ुअलाइज़ेशन स्क्रीनिंग (Direct visualization screening)

निम्नलिखित परीक्षण के साथ डायरेक्ट विज़ुअलाइज़ेशन स्क्रीनिंग की जा सकती है: 

कोलोनोस्कोपी: इस टेस्ट में, डॉक्टर एक कोलोनोस्कोप के साथ कोलन और मलाशय (rectum) की पूरी लंबाई को देखता है, इस प्रक्रिया को एक लचीली ट्यूब की मदद से किया जाता है जिसके अंत में एक हल्का और छोटा वीडियो कैमरा होता है। बायोप्सी सैंपल लेने के लिए या यदि आवश्यक हो तो पॉलीप्स जैसे किसी भी संदिग्ध क्षेत्र को हटाने के लिए कोलोनोस्कोप के माध्यम से स्पेशल डिवाइज़ का इस्तेमाल किया जाता है। कोलोरेक्टल कैंसर के औसत जोखिम वाले व्यक्तियों के लिए हर 10 साल में कोलोनोस्कोपी की जाती है। 

एक टेस्ट चुनना

यदि कोई व्यक्ति कोलोरेक्टल कैंसर के लिए स्क्रीनिंग टेस्ट करवाना चाहता है, तो उन्हें यह जानने के लिए अपने डॉक्टर से सलाह लेनी चाहिए कि कौन सा स्क्रीनिंग टेस्ट उनके लिए सबसे अच्छा विकल्प होगा।

टेस्ट को चुनने से पहले टेस्ट की विशेषताओं, इसके लाभों, हानियों और खर्च पर विचार किया जाना चाहिए। इसके अलावा, हर टेस्ट के फायदे और नुकसान, रोगी की की पसंद, उनका समग्र स्वास्थ्य और परीक्षण की उपलब्धता पर भी विचार किया जाता है।

कोलोरेक्टल कैंसर की रोकथाम (Colorectal Cancer Prevention)

कोलोरेक्टल कैंसर को रोकने का कोई विशेष तरीका नहीं है। लेकिन, नीचे दिए गए उपायों का पालन करने से इसके जोखिमों को कम करने में मदद मिल सकती है:

डाइट (Diet)

  • रेड मीट खाने से परहेज करें: अध्ययनों के अनुसार, रेड मीट खाने से कोलोरेक्टल कैंसर का खतरा 22% तक बढ़ जाता है।
  • शराब का सेवन सीमित करें या बंद करें: शराब के सेवन से कोलोरेक्टल कैंसर का खतरा 8% तक बढ़ जाता है।
  • धूम्रपान न करें: धूम्रपान करने वालों में एडिनोमेटस पॉलीप्स और कोलोरेक्टल कैंसर का 114% अधिक जोखिम होता है।

जीवन शैली (lifestyle)

  • यदि आप अधिक वजन वाले हैं तो वजन कम करें। हाई बॉडी मास इंडेक्स होने से कोलन कैंसर का खतरा बढ़ जाता है।
  • नियमित रूप से व्यायाम करें। सक्रिय रहने से कोलन कैंसर का खतरा 20% और रेक्टल कैंसर का खतरा 13% तक कम होता है।
  • हाई फाइबर डाइट  कोलन/मलाशय के कैंसर के जोखिम को कम करने में मदद करती है। दैनिक आहार में हाई फाइबर सामग्री वाले खाद्य पदार्थ और सलाद का उपयोग अच्छा होता है। 

मेडिकेशन (Medication)

  • अध्ययनों के अनुसार, एस्पिरिन के उपयोग से कोलोरेक्टल कैंसर का खतरा 40% तक कम हो जाता है। हालांकि, जीआई रक्तस्राव और रक्तस्रावी स्ट्रोक के जोखिम के कारण औसत जोखिम वाली आबादी में इसके उपयोग की सिफारिश नहीं की जाती है। 
  • कैल्शियम की खुराक एडेनोमेटस पॉलीप्स के जोखिम को 26% और कोलोरेक्टल कैंसर को 22% तक कम कर सकती है लेकिन ऐसे सप्लीमेंट्स को चिकित्सकीय सलाह के साथ लिया जाना चाहिए। 
  • स्टैटिन कोलोरेक्टल कैंसर के खतरे को 50% तक कम कर सकते हैं। 
Team Onco

Helping patients, caregivers and their families fight cancer, any day, everyday.

Recent Posts

  • తెలుగు

కీమోథెరపీకి ఎలాంటి దుస్తులు ధరించాలి?

కీమోథెరపీ కోసం క్యాన్సర్ రోగులు ఎలాంటి దుస్తులు ధరించాలో తెలుసా? ఈ ఆర్టికల్‌లో, క్యాన్సర్ రోగులకు కీమోథెరపీని సౌకర్యవంతంగా పొందడంలో సహాయపడే దుస్తుల జాబితాను అందించాము.

1 year ago
  • తెలుగు

మీ కోసం సరైన ఆంకాలజిస్ట్‌ని ఎలా కనుగొనాలి?

ఈ కథనం మీ క్యాన్సర్ రకానికి సరైన క్యాన్సర్ వైద్యుడిని కనుగొనడానికి 6-దశల గైడ్‌ను వివరిస్తుంది.

1 year ago
  • हिन्दी

वो 6 आदतें जो हैं कैंसर को बुलावा (habits that increase cancer risk)

तंबाकू का सेवन गुटका, जर्दा, पैन मसाला आदि के रूप में करना सिर और गले के कैंसर का मुख्य कारण…

1 year ago
  • తెలుగు

నోటి పుండ్లతో బాధపడుతున్న క్యాన్సర్ రోగులకు సరైన ఆహారాలు

నోటి పుండ్లతో బాధపడుతున్న క్యాన్సర్ రోగులకు క్యాన్సర్ చికిత్సలో ఉన్నప్పుడు తీసుకోవాల్సిన 12 ఉత్తమ ఆహారాలు.

1 year ago
  • తెలుగు

మీకు క్యాన్సర్ వచ్చే అవకాశాలను పెంచే 6 రోజువారీ అలవాట్లు

క్యాన్సర్‌కు కారణమయ్యే 6 జీవనశైలి కారకాలు గురించి ఈ కథనంలో వివరంగా ఇవ్వబడ్డాయి. అవి ఏమిటో తెలుసుకోండి!

1 year ago
  • हिन्दी

घर में इन गलतियों से आप दे रहें कैंसर को न्योता!

शोध की मानें तो न्यूज़पेपर प्रिंट करने में जो स्याही का इस्तेमाल होता है उसमें ऐसे केमिकल होते हैं जो…

1 year ago