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कैंसर का सफरः अपने जीवन की कहानी के एकमात्र लेखक हम खुद हैं

एक महिला में हमेशा से ही पुरूषों की तुलना में दर्द सहने की शक्ति ज्यादा होती है। बावजूद इसके उन्हें कई तरह की बीमारियों ने घेरा हुआ होता है, जिसका उन्हें अंदाजा भी नहीं होता। ऐसा इसलिए भी है, क्योंकि दूसरों के लिए काम करते-करते वो अपनी सेहत के प्रति कई बार लापरवाह हो जाती हैं। कोरोना माहामारी के बीच कई महिलाओं को काम की मदद देने वाली गुरविंदर कौर की कहानी भी कुछ ऐसी ही है। पंजाब की रहने वाली गुरविंदर पेशे से एक सेलेब्रिटी शेफ़ हैं, जो साथ-साथ  ‘Neki’ नाम का स्टार्टअप भी चलाती हैं। 

कोरोना ने जहां लोगों की नौकरी काम सब कुछ छीन लिया, वहीं आगे आकर दूसरों की मदद करते हुए गुरविंदर ने कई गरीब महिलाओं को रोज़गार दिया। एक हेल्दी लाइफस्टाइल फाॅलो करते हुए भी शायद वे अपने काम में इतना ज्यादा व्यस्त हो गई, कि अपनी सेहत पर ध्यान नहीं दे पायी। onco.com  सेे बात करते हुए उन्होंने बताया कि साल 2020 में ‘Neki’ नाम की कंपनी जो कि कपड़ों के कारोबार से जुड़ी है, की शुरूआत करते हुए उन्होंने दिन-रात बहुत ज्यादा मेहनत की। 

जब शुरू हुई सेहत में परेशानी 

कंपनी शुरू करने के दौरान 2020 में काम की भाग-दौड के बीच उनकी सेहत पर काफी असर होने लगा। उन्हें मल पास करने के दौरान काफी ज्यादा खून आने लगा था। अपनी परेशानी बढ़ने के बाद उन्होंने डाॅक्टर को दिखाया जहां अल्ट्रासाउंड, सीटी स्कैन और ब्लड टेस्ट में पाइल्स होने की बात सामने आई। हालांकि, इलाज चलाने के बाद उन्हें थोड़ा आराम मिला, लेकिन ये आराम शायद मानो किसी आने वाले तूफान से पहले की शांति जैसा था।

गुरविंदर बताती हैं कि उन्हें केवल मल में ब्लड आने के अलावा और कोई परेशानी नहीं थी। लेकिन साल 2021 फरवरी तक उनकी दिक्कत और ज्यादा बढ़ने लग गई, जिसके बाद उनका महज़ दो महीने में 10 किलो तक वज़न गिर गया। साथ ही उन्हें मलद्वार (anus) में बहुत ज्यादा दर्द रहने लगा, जो उनके लिए परेशानी का सबब बन गया। हालांकि तब तक भी उनके पेट में किसी तरह का दर्द नहीं था। जिसके बाद गुरविंदर ने अमृतसर में फिर से दूसरे डाॅक्टर को दिखाया जहां सभी कुछ टेस्ट होने के बाद फिशर होने की बात ही सामने आई। इस बीच गुरविंदर के शरीर से इतना ज्यादा ब्लड निकल चुका था कि अब उनके शरीर में केवल 7 ग्राम हीमोग्लोबिन ही बचा था। 

डाॅक्टर को बताने पर उन्हें कोलोनस्कोपी कराने की सलाह दी गई। इस बीच गुरविंदर परिवार की एक शादी में व्यस्त हो गई। अपने चेहरे पर ये जताते हुए कि मैं ठीक हूं, गुरविंदर शादी में शरीक तो हो गई, लेकिन उन्हें नहीं पता था कि इस खुशी के माहौल के महज़ एक दो दिन बाद उनकी जिंदगी कुछ इस कदर बदल जाएगी। शादी में उनकी हालत और ज्यादा खराब हो गई। आलम ये था कि अब चलते-फिरते हुए भी उनके मलद्वार से खून आ रहा था। शादी की भाग-दौड़ के बीच फंक्शन में ही वह अकेली एक कमरे में बेहोश पड़ी मिली। उनकी सेहत पर इस बीमारी का काफी ज्यादा प्रभाव पड़ रहा था। जिसके बाद तुरंत उन्होेंने अपने डाॅक्टर को फोन कर सारी जानकारी दी, जहां से उन्हें सिग्मोइडोस्कोपी कराने की सलाह दी गई। 

16 मार्च 2021 

16 मार्च 2021 ये दिन शायद गुविंदर की जिंदगी के कैलेंडर में एक छाप सी छोड़ गया है। इसी दिन उन्हें अपने शरीर में टयूमर के बारे में पता चला। डाॅक्टर ने उन्हें बताया कि ये कैंसर है, जो उनके शरीर से लीवर और ब्रेस्ट में फैल चुका है। हालांकि, बायोप्सी की रिपोर्ट आने का इंतजार इस आस में था कि शायद 1 प्रतिशत ही सही ये रिपोर्ट गलत साबित हो जाए। लेकिन होनी को कौन टाल सकता है। बायोप्सी की रिपोर्ट में ये कंफर्म हो गया कि उन्हें कोलोन कैंसर है। 

पिछले कुछ महीनों से रिर्पोटों के आधार पर गुरविंदर का पाइल्स का इलाज चल रहा था। शायद इस बारे में थोड़ा और पहले पता चल जाता तो उन्हें इस कदर दर्द और अपनी सेहत का साथ परेशानी नहीं झेलनी पड़ती। 

इसके बाद गुरविंदर सेकंड ओपिनियन के लिए दिल्ली पहुंची, जहां उनके सभी टेस्ट दोबारा से किए गए। वहां जाकर उन्हें डाॅक्टर ने जो बताया वो उनके लिए किसी बड़े सदमे से कम नहीं था। एक बेहतर सेलेब्रिटी शेफ होने के साथ-साथ लोगों को प्रेरणा देने वाली गुरविंदर इस बार मानो जिंदगी के आगे हार सी गई थी। दिल्ली में डाॅक्टरों ने उनके कैंसर की पुष्टि करते हुए ये भी बताया कि अब उनके पास केवल दो महीने का वक्त है। उनका कैंसर चौथी स्टेज का है। 

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जिंदगी के रास्ते में पिछले कुछ महीनों से कई तरह की आंधियों को पार करती हुई, गुरविंदर की आंखों की आगे इस वक्त केवल उनकी 7 साल की बेटी थी, जिसका उन्होंने अभी ठीक से बचपन देखा भी नहीं था। इन सभी बातों के बीच डाॅक्टरों ने उन्हें इलाज की काफी कठिन प्रक्रिया के बारे में बताया, पिछले कुछ महीनों से शारीरिक रूप परेशानी झेल रहीं गुरविंदर में अब शायद और दिक्कतें झेलने की हिम्मत नहीं थी, इसलिए उन्होंने कीमोथेरेपी लेने से इनकार कर दिया। 

वो कहते हैं न अपने जीवन की कहानी के एकमात्र लेखक हम ही होते हैं। जिसमें विश्वास केवल हमारे गलत फैसलों का एक बहाना होता है। जिंदगी की गिनतियां शुरू होने के बाद गुरविंदर ने इस वक्त को बर्बाद न करते हुए अपने परिवार और खास लोगों के साथ बेहतर वक्त गुजारने का फैसला किया। उनका मानना था कि अगर मुझे दो महीने बाद मर ही जाना है तो क्यों न मैं इस वक्त में कुछ बेहतर यादें जमा कर लूं।

हालांकि, इस दौरान उनके परिवार वालों ने वैकल्पिक उपचारों का सहारा भी लिया, लेकिन कुछ महीनों के बाद उनकी हालत और ज्यादा खराब होने लगी। पहले के इलाज से उन्हें जहां थोड़ा आराम मिल भी रहा था, अब उन्हें और ज्यादा परेशानी होने लगी थी।

वक्त कुछ ऐसे ही गुजरता गया, कीमोथेरेपी का इलाज न लेने का फैसला शायद गुरविंदर के लिए सबसे गलत साबित हुआ। साल 2021 जुलाई में जब उनकी हालत और ज्यादा खराब होने लगी, तो लुधियाना के ऑन्कोलॉजी अस्पताल में उन्हें एडमिट कराया गया। जहां उनके डाॅक्टर ने उन्हें काफी डांटा, क्योंकि वक्त इतनी तेज़ी से निकल रहा था और कैंसर उनके शरीर में फैलने लगा था, जिससे उनके साथ कभी भी कुछ भी हो सकता था। 

7 साल की बेटी बनी सहारा

डाॅक्टर की डांट के बाद अपने परिवार व मासूम बेटी के लिए गुरविंदर ने कीमोथेरेपी लेने का फैसला किया। उन्होंने इलाज की एहमियत को समझा और उसी दिन से उनकी ओरल कीमोथेरेपी शुरू हो गई। पिछले लंबे वक्त से अभी तक उनकी सात साल की बेटी गुरनुर ने उनकी एक मां की तरह देखभाल की और आज भी कर रही हैं। गुरविंदर बताती हैं कि उनके परिवार के साथ उनकी नन्हीं सी बेटी ने उन्हें हर कदम पर संभाला हैं। उस मासूम ने अपने नन्हें-नन्हें हाथों से अपनी मां को रोटियां बना कर खिलाई हैं, जब वह चल नहीं पाती तो उन्हें अपने हाथों का सहारा दिया और हर दिन उन्हें आगे बढ़ने के लिए उत्साहित किया। किसी बुरे वक्त में इंसान के लिए साथ बहुत ज़रूरी होता है, ऐसा ही कुछ गुरविंदर के साथ भी हुआ है। जहां डॉक्टरों ने उन्हें महज़ दो महीने का वक्त दिया था वहीं आज वहीं गुरविंदर हैं, जो कीमोथेरेपी के जरिए अपना बेहतर तरीके से इलाज करवा हैं और अब पहले से उनके स्वास्थ्य में काफी सुधार है।

कीमोथेरेपी के बाद दुष्प्रभाव

हर कैंसर के मरीज़ की तरह गुरविंदर भी कुछ दुष्प्रभावों का सामना कर रही हैं। उन्होंने बताया कि पहली कीमोथेरेपी के बाद से उनका शरीर फूलना शुरू हो गया, उन्हें खाने का स्वाद पसंद नहीं आता, बोलने में दिक्कत होती है, दस्त, थकान, शरीर में दर्द और घबराहट जैसी कई दिक्कतों का सामना करना पड़ रहा है। हालांकि, अपने परिवार और बेटी की मेहनत ने अब उन्हें वापस जिंदगी की पटरी पर ला खड़ा कर दिया है। जहां अब ये दुष्प्रभाव उन्हें काफी छोटे लगते हैं। 35 साल की कम उम्र में ही काफी कुछ हासिल कर चुकी गुरविंदर कैंसर के सफर में अपनी बेटी की सबसे ज्यादा कर्जदार हैं। जिनके लिए वो आगे बढ़कर अब उपचार ले रही हैं। वह अपनी बेटी को अपनी हर एक उपलब्धि से रूबरू कराना चाहती हैं। साथ ही गुरविंदर उस मासूम के किसी भी प्रयास को व्यर्थ नहीं जाने देना चाहती, जिसके लिए वह सोशल मीडिया पर अपनी बेटी की हर बात को शेयर करती हैं, कि किस तरह से वह इस सफर में उनके रीढ़ की हड्डी बनी हुई हैं। 

Team Onco

Helping patients, caregivers and their families fight cancer, any day, everyday.

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