इंसान के भीतर पनपा डर एक ऐसी चीज होती है, जो उसकी जिंदगी में सभी तरह की आई परेशानियों का कारण बनता है। और जब बात कैंसर जैसे बीमारी की हो तो यह समझना इतना मुश्किल नहीं है कि इंसान के उस वक्त का सफर कितना मुश्किल भरा हो जाता है।
कैंसर के सफर को लेकर हम आज मध्यप्रदेश के इंदौर के रहने वाले 48 वर्षीय उमेश काले के बारे में जानेंगे। उमेश पेशे से इलेक्ट्रॉनिक इंजीनियर रह चुके हैं, जो कुछ साल पहले कैंसर के चपेट में आए और दर्द और डर दोनों को हराकर उन्होंने इस बीमारी को मात दी।
साल 2016 सितंबर में उमेश को मुंह में छाला हुआ, क्योंकि उन्होंने लगभग 25 साल तक लगातार गुटखे का सेवन किया है तो यह छाला उनके लिए कोई बहुत बडी चीज नहीं थी, एक से दो बार छाले को फोड देने के बाद उमेश को बार-बा रवह छाला मुंह में पनप रहा था, जो परेशानी वाली बात थी। ऐसा बार-बार होने पर उमेश ने बिना किसी को बताए खुद का सेल्फ मेडिकेशन शुरू कर दिया। जिसमें वह एंटी ऑक्सीडेंज और विटामिन की गोलियों का सेवन किया करते थे।
अपने इन छालों के बारे में उन्होंने अपने कुछ दोस्तों से जो डॉक्टर हैं, उनसे सलाह ली, जिन्होंने बताया कि यह अल्सर हो सकता है, लेकिन वक्त पर इनकी जांच करायी जाए, तो जल्दी ही ठीक हो जाएगा।
उमेश ने अपनी इस हालात को अपनी पत्नी व पिता से लगभग 4 छिपाए रखा। अपनी परेशानी ज्यादा बढने के बाद लगभग 2017 जनवरी में उमेश ने अपनी पत्नी को इस बारे में बताया, जो उन्हें दंत चिकित्सक के पास उन्हें ले गई। डाॅक्टर ने उन्हें इस छालों के ठीक होने का लगभग एक हफ़ते का वक्त दिया, उन्हें बताया गया कि यदि यह सात दिनों के भीतर ठीक नहीं होते हैं, तो जरूर आपको कोई बडी समस्या है। डाॅक्टर से दवा के बाद उमेश को किसी तरह का आराम महसूस नहीं हुआ, और उनके छालों में से खून आने लगा।
उमेश की हालत को देखते हुए उनकी पत्नी उन्हें मुबंई ले गई, जहां उन्हें बायोप्सी कराने की सलाह दी गई। बायोप्सी की प्रक्रिया के बारे में जानकर उमेश काफी डर गए, जहां उन्हें जल्द से जल्द बायोप्सी करानी थी, वहां उमेश मुंह इंजेक्शन लगने व मांस काटने वाली प्रक्रिया के बारे में सोचकर बायोप्सी को टाल दिया करते थे।
उमेश अपनी पत्नी के साथ मुंबई अस्पताल तो जाते, लेकिन वह बायोप्सी के डर से किसी न किसी तरह का बहाना करके वापस इंदौर लौट आया करते थे, ऐसा लगभग 4 बार हुआ। जिसमें काफी वक्त गुजर गया। वो वक्त ऐसा था कि इलाज की प्रक्रिया के डर ने 44 साल के व्यक्ति को 4 साल का बच्चा दिया, जहां वह अस्पताल के बाहर से रोते-रोते वापस आ जाया करते थे। उमेश के कैंसर की शुरूआत उस वक्त हो ही रही थी, लेकिन सही तरह से कैंसर के प्रति जागरूक न होने की वजह से उन्होंने इलाज में काफी देरी की और एक वक्त के बाद उन्हें अपना ऊपर का जबडा गवाना पड़ा।
उमेश को शायद समय पर इसके प्रति सही तरह से राय या काउंसलिंग मिल जाती तो इलाज की प्रक्रिया से वह न तो इतना डरते और न ही उनका कैंसर पहली स्टेज से वह तीसरी स्टेज तक नहीं पहुंचता। अप्रैल 2017 में उमेश ने मुंबई में बायोप्सी कराई। बायोप्सी में कैंसर होने की बात सामने आई।
मुंबई के कोकिलाबेन अस्पताल में उनका इलाज शुरू हुआ। जहां 26 मई 2017 को उनकी सर्जरी हुई, जो लगभग 12 घंटे तक चली। उमेश बताते हैं कि क्योंकि उनका कैंसर चौथी स्टेज में पहुंच चुका था, तो ऐसे में सर्जरी की मदद से उनका बाएं ओर का उपर का जबड़ा निकाला गया। हालांकि, सर्जरी के बाद वह कैंसर मुक्त हो चुके थे। जब उमेश को अस्पताल से वापस घर भेज दिया गया, तो उनकी परेशानी यहीं खत्म नहीं हुई।
कैंसर में इलाज प्रक्रिया के बाद लोगों को कई तरह की परेशानियों का सामना करना पड़ता है, जो जाहिर तौर पर एक वक्त तक सीमित रहती है, लेकिन सर्जरी के लगभग दस दिन बाद जब उमेश कुछ खाने की कोशिश करते, तो खाना उनके पेट तक पहुंच नहीं पाता था। इस बीच उन्हें सांस लेने में तकलीफ महसूस होने लगी।
दरअसल, जो खाना उमेश खा रहे थे, वह गले में एक छेद होने की वजह से पेट न जाकर नाक के जरिए बाहर आ रहा था। इलाज होने के बावजूद यह सब होना उमेश की उम्मीद को और ज्यादा तोड़ रहा था। टांकों के खुलने की वजह से उनके गले में यह छेद हो गया था।
सर्जरी के बाद उमेश का वजन काफी हद तक गिरने लगा, गले में छेद होने के कारण वह कुछ खा पी नहीं सकते थे। जहां सर्जरी से पहले वह 87 किलो के हुआ करते थे, वहीं उनका वजन लगभग 34 किलो तक आ पहुंचा था। सर्जरी के तुरंत बाद उमेश के हलक में हुए इस छेद ने उनकी मुश्किलों को और ज्यादा बढ़ा दिया। आलम यह था कि डॉक्टर के पास उनकी इस परेशानी का कोई इलाज नहीं था, क्योंकि सर्जरी के तुरंत बाद कोई और ऑपरेशन लगभग 6 महीने तक नहीं किया जा सकता था।
सर्जरी के आठ हफ्तों बाद जून के अंत में उमेश की रेडिएशन थेरेपी शुरू हुई, जिसमें डाॅक्टर ने उन्हें 36 सीटिंग्स कराने की सलाह दी थी। जिसमें एक दिन उनकी कीमोथेरेपी की जाती थी। रेडिएशन के बाद भी उमेश को काफी हद तक परेशानियों का सामना करना पड़ा। खाना पीना उनके लिए मानो एक सपना जैसा था, दिन प्रतिदिन उनका वजन घट रहा था, उनका शरीर जवाब देने लगा था। आंखों में आंसू आने के बावजूद वह गले से आवाज निकालकर रो तक नहीं पाते थे। कुछ वक्त पर जब मुंह के अल्सर ठीक भी होने लगे तो उमेश के मुंह में राल जैसी भर जाती थी, जिसे बार-बार साफ करना पड़ता था।
एक वक्त ऐसा भी आया जब उमेश ने जिंदगी से हारकर मौत को गले लगाना चाहा। उनका शरीर इस कदर कमजोर हो चुका था, कि वह खुद से उठ बैठ तक नहीं पाते थे। उनके मुंह में रेडिएशन बाद फिर से छाले पनपने लगे, इस बार यह ऐसे थे कि जैसे मांस खुद ही निकलकर बाहर आ जाए। उनके छालों में से काफी खून भी आया करता था।
उमेश की पत्नी चार्टड अकांटेंट के पद पर तैनात हैं, जिन्होंने कुछ वक्त बाद ऑफिस जाना शुरू कर दिया। बीवी के ऑफिस जाने के बाद बुजुर्ग पिता के साथ उमेश अकेले घर पर रहते थे, इस बीच उनकी पत्नी ने उनका पूरा साथ दिया। घर से निकलने से पहले वह खाना टेबल पर रख कर जाती, इस उम्मीद में की वह कोशिश करके थोड़ा तो खा लेंगे, उनके खाली वक्त के लिए कुछ किताबें रख कर जाया करतीं। शाम को आकर उनसे पूरे दिन भर का हाल किताब में लिखने को कहा करती। अपने कैंसर के सफर के बारे में उमेश कहते हैं कि उनकी पत्नी अगर आज न होती तो शायद वह जिंदा न होते।
इस सफर के दौरान कुछ चुनिंदा लोग ही उमेश के साथ थे। जिनमें बचपन के दोस्त ने लगातार उनसे संपर्क बनाए रखा, उनको हिम्मत दी। वह लगातार उनसे फोन पर बात किया करते, मिलने के वक्त उमेश के लिए कुछ – कुछ खाने के लिए लाया करता। इसके अलावा अपने पत्नी के बडी बहन के पति भी उनके साथ संपर्क में रहे, जो उन्हें वक्त वक्त पर गाड़ी में बैठा के बाहर घुमाया करते थे। कैंसर के दौर से गुजरते वक्त उमेश ने एक बार मौत को गले लगाने तक की कोशिश की, लेकिन कुछ चुनिंदा लोगों की मदद से वह इस पड़ाव को पार कर पाएं। लगभग ढाई महीने के बात उमेश थोडा नार्मल लाइफ में वापस आने लगे।
खाने में वह रोटी के ऊपर का हिस्सा सब्जी से खाना करते थे, जब ढाई महीने बाद पहली बार उमेश ने खाना खाने की कोशिश की, तो उनका मुंह केवल 1 सेमी ही खुल पाया। लेकिन इस क्षण उन्होंने जब रोटी का निवाला अपने मुंह में डाला तो वह आसानी से रोटी को घूंट पा रहे थे, और इस बार रोटी का उनकी नाक में न जाकर सीधा उनके पेट में गई, जिससे उनकी खुशी का ठिकाना नहीं रहा। इतने लंबे वक्त तक बिना खाए पिए रहने के बाद उमेश धीरे-धीरे जिंदगी में उम्मीद की किरण के साथ वापस लौटे।
एक बार जिंदगी के बुरे पड़ाव को पार करने के बाद उमेश धीरे-धीरे पटरी पर लौटे, लेकिन इस कैंसर के चलते उन्हें अपनी नौकरी गंवानी पड़ी। जिसके कारण वह डिप्रेशन में चले गए। शारीरिक तौर पर पूरी तरह से फिट न होने के कारण उन्हें कहीं जॉब नहीं मिल रही थी, क्योंकि वह साफ तरीके से बोल नहीं पाते थे। पूरी तरह से स्वस्थ नहीं थे। 25 साल तक बडी-बडी नामी कंपनियों में काम करने के बाद, बिना जाॅब के रहना उमेश के लिए काफी मुश्किल था। इस मुश्किल वक्त में उनके एक दोस्त पीयूष ने उनकी काफी मदद की। उमेश की पत्नी बतौर चार्टर्ड अकाउंटेंट के पद पर तैनात हैं, जो खुद भी नहीं चाहती हैं कि वह अब कैंसर के बाद कुछ भी जॉब करें।
हालांकि, कैंसर के सफर को पार करने के बाद अब उमेश लोगों की खुद काउंसलिंग किया करते हैं, जिससे लोग डर के कारण वो सब गलती न करें जो उमेश ने की थी। उमेश का मानना है कि उन्होंने डर और जागरूक न होने के कारण अपने कैंसर की स्टेज को खुद बढ़ाया।
आज उमेश कैंसर से पीड़ित लोगों की काउंसलिंग करते हैं। सोशल मीडिया की मदद से उमेश कई लोगों से जुड़े, जिनकी मदद आज वो किसी न किसी तरह से करते हैं। कैंसर के प्रति लोगों को जागरूक करने की इस मुहिम में उमेश एक व्हाट्सएप ग्रुप चलाते हैं जिसका नाम है केयर एंड शेयर। इस ग्रुप में कई कैंसर के मरीज, देखभालकर्ता और डाॅक्टर्स जुड़े हैं।
उमेश कहते हैं कि डर से सिर्फ कुछ न करने की सोच मिलती है, लेकिन जो डर के बाद भी कुछ करे तो, उसे सबक जरूर मिलता है। कैंसर के इस सफर में उमेश ने भी कुछ ऐसी ही सीख पाई है, जहां आज वो लोगों को यह बातें समझाते हैं। इलाज की प्रक्रिया से डरना बीमारी से छुटकारा पाने का तरीका नहीं है। उमेश अब नशे और कैंसर के खिलाफ स्कूल और कॉलेज में जाकर सेशन लेते हैं।
कैंसर अपने आप में एक डरावना शब्द है, लेकिन इस बात में भी दो राय नहीं है कि आज इस बीमारी को हराने के लिए मरीजों को बेहतर इलाज मिल पाता है। इसलिए कैंसर से डरने की नहीं इसके प्रति जागरूक रहने की जरूरत है।
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