हिन्दी

मेरे कैंसर का सफरः ‘द फ्लाइंग सिद्धार्थ’

पेशे से आईटी प्रोफेशनल सिद्धार्थ घोष दिल्‍ली के रहने वाले हैं। एक स्पोर्ट्स पर्सन होने के नाते, हर वक्‍त एक्टिव रहना और सेहत को लेकर काफी सजग रहने वाले इंसान को कैंसर जैसी बीमारी से जूझना पड़े तो उसके हालात को समझ पाना किसी के लिए भी मश्किल नहीं होगा। 

हमेशा से स्पोर्ट्स के प्रति रूचि रखने वाले सिदार्थ 12 साल से एक एथलीट रहे हैं और मैराथन में भाग लेते आए हैं। वह हाफ और फुल मैराथन दौड़ते है। इसके साथ ही वे एक फुटबॉलर और क्रिकेटर भी रहे हैं। उन्‍हें ट्रैवलिंग और बाइक राइडिंग करने का बहुत शौक है। अपनी निजी जिंदगी में इतने एक्टिव रहने वाले व्‍यक्ति को कैंसर हो जाए, तो यह बीमारी कब कहां दस्‍तक दे दे, इसका कोई अंदाजा नहीं है। 

सिद्धार्थ के इन शौक के बारे में हम आपको इसलिए बता रहे हैं कि क्‍योंकि साल 2014 में फरवरी में उन्‍हें किडनी में कैंसर का सामना करना पड़ा। onco.com से बात करते हुए सिद्धार्थ ने बताया कि 22 फरवरी 2014 को कॉर्पोरेट क्रिकेट टूर्नामेंट खेलने के बाद वह एक मॉल में बाथरूम गए, जहां उन्‍होंने अपने यूरीन का रंग थोड़ा ब्राउन पाया। पहली बार उन्‍होंने इस पर इतना ध्‍यान नहीं दिया, ठीक उसी रात को घर जाकर उन्‍हें वहीं यूरीन में बदलाव नज़र आया। इसके बारे में उन्‍होंने अपनी मां को बताया, क्‍योंकि सिद्धार्थ के माता और पिता दोनों ही डॉक्‍टर हैं, तो उन्‍होंने इस चीज़ को नज़रअंदाज़ न करते हुए, इसकी जांच कराई। 

जब शुरूआत में ब्‍लड, यूरीन और अल्‍ट्रासाउंट का टेस्‍ट हुआ तो डॉक्‍टरों को कुछ खास़ समझ में नहीं आया। दरअसल, सिद्धार्थ के यूरीन से ब्‍लड आने पर उन्‍हें किसी तरह का दर्द महसूस नहीं हो रहा था। जो परेशानी वाली बात थी। जिसके बाद उन्‍हें सीटी स्‍कैन कराने की सलाह दी गई। रिपोर्ट में आया कि उनकी किडनी में एक ट्यूमर बढ़ रहा था, जो उनकी दाहिनी किडनी में गोल्‍फ बॉल के आकार से भी बड़ा था। जिसमें ब्‍लड सप्‍लाई होने लगा था और वह अंदर फट गया, जिससे सिद्धार्थ को यूरीन में खून आ रहा था। यह दूसरी स्‍टेज का किडनी कैंसर था, जिसे रीनल सेल कार्सिनोमा कहते हैं।  

किडनी में कैंसर की बात सिद्धार्थ के लिए किसी बड़े झटके से कम नहीं थी,  उनके मन में यही सवाल आया कि आखिर मैं ही क्‍यों… हालांकि इस तरह की बातों से उन्‍हें परेशानी के अलावा कुछ हासिल नहीं होता, इसलिए उन्‍होंने हिम्‍मत रखी और खुद से कहा कि मैं यह वक्‍त भी पार कर लूंगा। 

सिद्धार्थ ने अपनी रिपोर्ट कुछ दोस्‍तों को भेजी जो डॉक्‍टर हैं और दूसरे देशों में हैं, साथ ही उन्‍होंने भारत में भी कुछ डॉक्‍टर्स से संपर्क किया, सभी ने उन्‍हें सर्जरी की सलाह दी। मार्च में उनका ऑपरेशन किया गया, और उनकी दाहिनी किडनी, यूरेटर और कुछ लिम्फ नोड्स को निकाल लिया गया। जिसके बाद सिद्धार्थ को किसी तरह की रेडिएशन या कीमोथेरेपी नहीं दी गई, लेकिन उन्‍हें काफी हेवी मेडिकेशन पर लगभग डेढ़ साल तक रखा गया। 

सर्जरी के बाद सिद्धार्थ का शरीर काफी कमज़ोर हो गया था, उन्‍हें खून बाहर से चढ़ाया गया था, उन्‍हें काफी बुखार आ जाता था। सिद्धार्थ को दस दिन के बाद डिस्‍चार्ज कर दिया था। उपचार के दुष्‍प्रभाव में उन्होंने बालों का कम होना, काफी कमजोरी और बदन दर्द महसूस किया। वह बेड से उठने पर 5 से 7 मिनट में थक जाया करते थे। सर्जरी के बाद उनके टांकों पर एक ड्रेन लगाया गया था, जहां से लगातार पस आता था।  

‘द फ्लाइंग सिद्धार्थ’

लगभग 3 महीने तक सिद्धार्थ बेड रेस्‍ट पर थे, जहां से वह वक्‍त के साथ रिकवर हुए। ठीक होने के कुछ वक्‍त तक तो सिद्धार्थ वापस मैदान में नहीं जा सकते थे, लगभग 8 महीने के बाद 21 किलोमीटर की रेस में दौड़े, हालांकि उन्‍होंने पहले से ज्‍यादा वक्‍त लिया, लेकिन बेड से उठने के बाद यह सिद्धार्थ का पहली उपलब्धि थी। जिसके बाद उन्‍होंने मुंबई में 42 किलोमीटर की रेस में दौड़ने का फैसला किया। इस रेस को पहले सिद्धार्थ 4 घंटे में पूरा करते थे, लेकिन इस बार 6 घंटे लगाए, उन्‍हें इस बात की काफी खुशी थी कि वह अपनी पहले वाली जिंदगी की रफतार पकड़ रहे हैं। सिद्धार्थ बताते हैं कि सर्जरी के बाद उनका शरीर इस कदर कमजोर हो चुका था, कि उन्‍होंने इस बात की उम्‍मीद छोड़ दी थी, कि वह अब कभी खेल पाएंगे, दौड़ पाएंगे या बाइक चला पाएंगे। लेकिन एक स्‍पोटर्स पर्सन होने के नाते उन्‍होंने हिम्‍मत नहीं हारी और वह एक वक्‍त के बाद फिट होकर मैदान में लौटे। इसी बीच उन्‍होंने क्रिकेट टूर्नामेंट खेला, कैंसर की जंग जीतकर दमदार वापसी ने सिद्धार्थ को एक नया नाम दिया, उनकी टीम के लोगों और दोस्‍तों ने उन्‍हें ‘फ्लाइंग सिद्धार्थ’ का नाम दिया।

सिद्धार्थ बताते हैं कि वह अपनी लाइफ में युवराज सिंह से काफी इंस्‍पायर हुए, उनका मानना है कि कैंसर किसी को भी हो सकता है। ऐसे में हार न मानकर उस मुश्किल का सामना करो जिसे आप जीत ही जाएंगे।

“कैंसर ऐज़ आई नो इट” 

2019 में, सिद्धार्थ ने अपनी बुक “कैंसर ऐज़ आई नो इट” लिखी। इसे अमेज़ॅन पर द इंडियन ऑथर्स एसोसिएशन द्वारा लॉन्च किया गया था। यह 14 देशों में उपलब्ध है। जिसमें उन्‍होंने अपने कैंसर के सफर के बारे में बात की है और बताया कि इस वक्‍त में कैसे पॉजिटिव रहें। इस बुक से कमाया गया सारा पैसा कैंसर एनजीओ को चैरिटी में जाता है।

सिद्धार्थ का मानना है कि कैंसर रोगियों को सहानुभूति की आवश्यकता नहीं है, उन्हें प्रेरणा की जरूरत है। आपको इसके बारे में पॉजिटिव रहने की आवश्यकता है, कैंसर का सफर अपने आप आसान हो जाएगा। 

Team Onco

Helping patients, caregivers and their families fight cancer, any day, everyday.

Recent Posts

  • తెలుగు

కీమోథెరపీకి ఎలాంటి దుస్తులు ధరించాలి?

కీమోథెరపీ కోసం క్యాన్సర్ రోగులు ఎలాంటి దుస్తులు ధరించాలో తెలుసా? ఈ ఆర్టికల్‌లో, క్యాన్సర్ రోగులకు కీమోథెరపీని సౌకర్యవంతంగా పొందడంలో సహాయపడే దుస్తుల జాబితాను అందించాము.

2 years ago
  • తెలుగు

మీ కోసం సరైన ఆంకాలజిస్ట్‌ని ఎలా కనుగొనాలి?

ఈ కథనం మీ క్యాన్సర్ రకానికి సరైన క్యాన్సర్ వైద్యుడిని కనుగొనడానికి 6-దశల గైడ్‌ను వివరిస్తుంది.

2 years ago
  • हिन्दी

वो 6 आदतें जो हैं कैंसर को बुलावा (habits that increase cancer risk)

तंबाकू का सेवन गुटका, जर्दा, पैन मसाला आदि के रूप में करना सिर और गले के कैंसर का मुख्य कारण…

2 years ago
  • తెలుగు

నోటి పుండ్లతో బాధపడుతున్న క్యాన్సర్ రోగులకు సరైన ఆహారాలు

నోటి పుండ్లతో బాధపడుతున్న క్యాన్సర్ రోగులకు క్యాన్సర్ చికిత్సలో ఉన్నప్పుడు తీసుకోవాల్సిన 12 ఉత్తమ ఆహారాలు.

2 years ago
  • తెలుగు

మీకు క్యాన్సర్ వచ్చే అవకాశాలను పెంచే 6 రోజువారీ అలవాట్లు

క్యాన్సర్‌కు కారణమయ్యే 6 జీవనశైలి కారకాలు గురించి ఈ కథనంలో వివరంగా ఇవ్వబడ్డాయి. అవి ఏమిటో తెలుసుకోండి!

2 years ago
  • हिन्दी

घर में इन गलतियों से आप दे रहें कैंसर को न्योता!

शोध की मानें तो न्यूज़पेपर प्रिंट करने में जो स्याही का इस्तेमाल होता है उसमें ऐसे केमिकल होते हैं जो…

2 years ago