पढ़ें युवराज के कैंसर की कहानी

by Team Onco
3567 views

भारत को 2011 वर्ल्ड कप में जीत दिलाने के बाद युवराज सिंह की जिंदगी का सबसे दर्दनाक सफर शुरू हुआ। 2 अप्रैल 2011, शनिवार की रात मुंबई के वानखेड़े स्टेडियम में करीब 42,000 दर्शकों के बीच सिर्फ ‘करो या मरो’ की स्थिति थी। युवराज को साल की शुरूआत में ही कैंसर के कुछ लक्षण महसूस होने लग गए थे, लेकिन वल्र्ड कप में खेलने के उनके जुनून के आगे उन्होंने अपने कैंसर के दर्द को तवज्जो नहीं दी। आज हम इस आर्टिकल में युवी के बारे में पढेंगे और जानेंगे कि आखिर उन्होंने कैंसर के अपने इस सफर को कैंसर पार किया।

अपने कैंसर के बारे में पता चलने के बाद बोस्टन और इंडियानापोलिस में कीमोथेरेपी उपचार कराने के लिए गए़, और मार्च 2012 में कीमोथेरेपी के अपने तीसरे और अंतिम साइकल के बाद उन्हें छुट्टी दे दी गई। वह अप्रैल में भारत लौट आए। यह बहुत ही कम शब्दों में युवी की कहानी है।

क्रिकेट जगत के जाने माने खिलाडी युवराज सिंह ने अपने कैंसर के सफर को काफी बेहतर तरीके से मात देकर मैदान में वापसी की है, आज में इस ब्लाॅग में उन्हीं के कैंसर के सफर के बारे में जानेंगे

‘जब आप पहली बार कैंसर शब्द सुनते हैं, तो आप बुरी तरह डर जाते हैं। कैंसर किसी सजा-ए-मौत की तरह महसूस होता है। आपको बिल्कुल पता नहीं होता, कि आपकी जिंदगी आपको कहां ले जाएगी।‘ ये शब्द युवी के हैं जब उन्हें अपने कैंसर के बारे में पता चला था।

युवराज सिंह जब अपने करियर के चरम पर थे, तभी उन्हें कैंसर के बारे में पता चला। बावजूद इसके उन्होंने टीम इंडिया को साल 2011 का वर्ल्ड कप जितवाया। बस इतना ही नहीं, युवी ने हार ने मानने का जज्बा दिखाते हुए, कैंसर को मात देकर मैदान में एक वक्त के बाद वापसी भी की।

युवराज के शब्दों में जानने की कोशिश करें तो, उन्होंने अपने खेल पर ज्यादा ध्यान देते हुए टूर्नामेंट के दौरान कई शुरुआती लक्षणों की अनदेखी की। युवी ने बाद में इस बात का खुलासा किया कि 2011 की शुरुआत में उन्हें सांस लेने में परेशानी, मुंह से खून थूकना व स्टैमिना में कमी महसूस होती थी। 

डॉक्टर के पास जाने के बाद जब उन्हें इन लक्षणों के पीछे के कारणों का पता लगा, तो वह उनके लिए किसी बुरे सपने से कम नहीं था।

उन्हें सेमिनोमा लंग कैंसर था। उनके बाएं फेफड़े में एक कैंसरयुक्त ट्यूमर धीरे-धीरे बढ़ रहा था, और उनके फेफड़ों और धमनियों के खिलाफ दबाव डालने से उन्हें दिल का दौरा पड़ने का खतरा था। इसका इलाज करने के लिए उसे क्रिकेट से समय निकालने और कीमोथेरेपी लेने की आवश्यकता थी, क्योंकि इसके बाद कुछ दुष्प्रभावों का सामना करना पडता है।

युवी की ये तकलीफ, हालांकि, रूटीन लंग कैंसर नहीं थी। जिसे आज हम लंग कैंसर के नाम से जानते हैं, उसकी जीवित रहने की दर बहुत कम होती है। सौभाग्य से, युवराज को जो बीमारी (सेमिनोमा लंग कैंसर) हुई थी, उसमें काफी बेहतर इलाज संभव है, और यदि इसका समय पर इलाज किया जाए तो काफी हद तक ठीक किया जा सकता है। युवराज समझ चुके थे कि अगर उन्हें जल्द ही मैदान में वापस आना है तो उन्हें प्रभावी कैंसर उपचार प्राप्त करना होगा। उन्होंने कीमोथेरेपी के कई साइकल से शुरुआत की और 2012 में उन डॉक्टरों से मिलने के लिए बोस्टन और इंडियानापोलिस के लिए निकल गए, जिन्होंने पूर्व साइक्लिस्ट लांस आर्मस्ट्रांग का इलाज किया था।

कीमोथेरेपी के तीन सेशन के बाद, युवराज वापस भारत आए, वह टीम के लिए फिर से खेलने को लेकर काफी उत्सुक थे। क्या वह अपनी वापसी करने में सक्षम था?

कैंसर के दौर से निपटने के बाद कई मीडिया साक्षात्कारों में, युवराज ने बताया कि इस मुश्किल दौर में सबसे पहले आपको इस रोग से संबंधित लक्षणों को स्वीकार करना पडेगा, इसके निदान, कैंसर से लड़ने के लिए सही तरीके से चुनना पडेगा और उपचार के दौरान सकारात्मक रहने की जरूरत है।

यह बात सभी पर लागू होती है, जो कैंसर से लड़ रहा है – चाहे वह रोगी हो, या कैंसर रोगी का कोई पारिवारिक सदस्य हो, या फिर ऐसे डॉक्टर भी हों जो दिन-प्रतिदिन कैंसर का इलाज करते हों। 

क्रिकेटर योगराज सिंह के बेटे युवराज सिंह ने अपने अंतरराष्ट्रीय करियर की शुरुआत अक्टूबर 2000 में की थी। केन्या के खिलाफ युवराज ने पहला अंतरराष्ट्रीय वनडे मैच खेला। हमें युवराज के इस सकारात्मक रवैये से सीख लेने की जरूरत है। कैंसर का नाम सुनने के बाद ही लोगों में भय सा आ जाता है, ऐसे में आपको यह नहीं भूलना चाहिए कि सही समय पर इलाज से कैंसर को मात दी जा सकती है। कभी-कभी नकारात्मक विचार आपको परेशान कर सकते हैं, लेकिन इससे आपको कमजोर होने की जरूरत नहीं है। बल्कि, यह मानना चाहिए कि एक दिन हर परिस्थिति से निकला जा सकता है और मुझे कैंसर को हराना ही है। 

युवराज सिंह के कैंसर की कहानी को अंग्रेजी में पढ़ने के लिए यहां क्लिक करें-Yuvraj singh Cancer

Related Posts

Leave a Comment