कैंसर के काउंसलर बिंसी मैथ्यू समझाते हैं कि कैंसर के दर्द को घर पर कैसे मैनेज करें। दर्द सबसे सामान्य और तकलीफ देने वाला लक्षण होता है जो ज्यादातर कैंसर के मरीजों को अनुभव करना पड़ता है।
ये कई पहलुओं को प्रभावित कर सकता है जैसे किसी की बीमारी से लड़ने को क्षमता को और साथ ही कैंसर के मरीजों और उनके केयर करने वालों की जिंदगी की क्वालिटी को भी।
पुराने पद्धति के अनुसार, दर्द एक शारीरिक अनुभव है लेकिन दर्द के और भी कई पहलू हैं जिनके बारे में कम चर्चा की जाती है। जैसे समझने की क्षमता, मनोवैज्ञानिक, सामाजिक, अध्यात्मिक और पारंपरिक पहलू।
कैंसर के दर्द से कैसे निपटें :
यहीं से ‘टोटल पेन’ के विचार की शुरुआत हुई। यह नाम सबसे पहले डेम साइसली सौंडर्स ने रखा था, जो मॉडर्न होस्पाइस मूवमेंट के संस्थापक थे।
टोटल पेन के विचार को समझना
डेम साइसली सौंडर्स के मुताबिक, दर्द के चार आयाम या पहलू होते हैं जिसे टोटल पेन के रूप में जाना जाता है –
- शारीरिक दर्द
- मनोवैज्ञानिक दर्द
- आध्यात्मिक दर्द
- सामाजिक दर्द
- शारीरिक दर्द की तरफ ध्यान ज्यादा खींचता है और मानक प्रोटोकॉल और गाइडलाइन के तहत इन्हें दवाईयों से ठीक किया जाता है।
- मनोवैज्ञानिक दर्द का अनुभव करने वाले मरीज डर या निराशा जैसे शब्दों का इस्तेमाल करके अपनी भावना को समझाते हैं।
- आध्यात्मिक दर्द अक्सर ऊपर वाले की ताकत और जिंदगी की आंतरिक भावना से जुड़ी हुई होती है। मरीज अपनी जिंदगी के मतलब और मकसद पर सवाल करते हैं और अक्सर पूछते हैं कि “मैं ही क्यों?”
- जबकि, समाजिक दर्द में मरीज को समाज में अकेला महसूस हो सकता है, वो सामाजिक गतिविधियों से अलग हो सकता है या परिवार के ऊपर बोझ जैसा महसूस करके खुद को दोषी समझता है।
यह बेहद जरूरी है कि दर्द के हर पहलू की तरफ ध्यान दिया जाए और मरीज और उसके परिवार को राहत प्रदान की जाए।
टोटल पेन को मैनेज करने के सामान्य तकनीक
टोटल पेन के व्यवहार को समझते हुए यह समझना जरूरी है कि दवा के अलावा और भी कई तरीकों से इलाज करने की आवश्यकता होती है।
सबसे जरूरी बात यह है कि हेल्थ केयर के प्रोफेशनल से इस पर चर्चा करें। मेडिकल टीम दर्द के लक्षणों को परख कर स्थिति को समझते हैं। उसके बाद वे मरीज को सबसे अच्छे ट्रीटमेंट के विकल्प बता कर गाइड करते हैं।
घर पर कैंसर के दर्द को कैसे मैनेज करें
इस ब्लाॅग में हम कुछ भावनात्मक दृष्टिकोण के बारे में चर्चा करेंगे, जो सामान्यतः उन कैंसर के मरीजों के बीच इस्तेमाल होता है जिन्हें कैंसर के सफर के दौरान हल्के दर्द का अनुभव हो।
इमोशनल सपोर्ट और काउंसलिंग (Emotional support and counselling)
अगर कैंसर का मरीज उदास या चिंतित है तो उसे और भी दर्द महसूस होगा। वहीं दूसरी तरफ, अगर उसे लंबे समय से बहुत ज्यादा दर्द है तो इससे वो और भी उदास, चिंतित, गुस्सा और बाकी के और भी नकारात्मक भावनाओं का अनुभव कर सकता है।
कैंसर के मरीजों की काउंसलिंग (Cancer counselling)
काउंसलिंग के दौरान थेरेपिस्ट नकारात्मक सोच के ढांचे को समझते हैं और उसके हिसाब से वे मरीज को परिस्थिति को संभाल कर उससे निपटने के लिए स्वस्थ तरीके विकसित करने में मदद करते हैं।
थेरेपिस्ट मरीजों को कुछ ऐसे तरीके भी सिखाते हैं जिससे वे दर्द का सामना आसानी से कर सकें और उनके लिए ऐसे लक्ष्य भी तय करते हैं जिससे वे अपनी जिंदगी में आगे बढ़ सकें।
दूसरी तरफ ध्यान खींचना (Distractions)
इस विधि में मरीज अपना ध्यान दर्द से हटा कर किसी आनंद देने वाली बात की तरफ लगाता है। कोई भी ऐसी गतिविधि जो आपकी पसंद और शौक के अनुसार हो, वो ध्यान भटकाने वाली हो सकती है जैसे टीवी देखना, गाने सुनना, मंडला रंगना, गिनती करना, बुनाई करना, पेंटिंग करना आदि।
ध्यान दूसरी तरफ खींच कर कैंसर का दर्द मैनेज करें
अपना ध्यान दूसरी तरफ खींचने के लिए मरीज एक लय में सांस लेने की प्रैक्टिस कर सकता है या अपने किसी दोस्त से मिलने जा सकता है।
मंत्र ध्यान (Mantra Meditations)
कई कैंसर के मरीज मंत्र ध्यान की प्रैक्टिस करके काफी अच्छा महसूस करते हैं।
इसकी प्रैक्टिस करने के लिए आप कोई भी शब्द या मंत्र (कोई वाक्य या स्लोगन जो बार बार दोहराया जाए) का प्रयोग कर सकते हैं जैसे भगवान का नाम, कोई धार्मिक मंत्र, जाप या किसी धार्मिक किताब के शब्द।
कैंसर के दर्द से आराम पाने के लिए ध्यान और मंत्र का इस्तेमाल
इसे कैसे करना है :
- एक शांत और आरामदेह जगह चुनिए जहां कोई व्यवधान न हो। मरीज आराम की मुद्रा में बैठ जाए। वो लेट भी सकता है, बैठ भी सकता है या उसका मन हो तो वो टहल भी सकता है। मरीज इस काम के लिए अपनी समय सीमा निर्धारित कर सकते हैं। ये सामान्यतः 3 से 30 मिनट तक के लिए किया जाता है।
- अपने हिसाब से अपना समय निर्धारित कर लें। आप अपने मोबाइल में टाइमर या अलार्म का इस्तेमाल कर सकते है। कुछ गहरी सांस लेने से शुरुआत कीजिए और अपनी सांसों को अंदर और बाहर जाते हुए ध्यान से महसूस कीजिए। मंत्र जाप शुरू करते ही अपनी नाक से लगातार सांस लेते रहिए।
- हम आपको ये सुझाव देंगे कि आप मंत्र को जोर-जोर से बोल कर पढ़ें जिससे अगर आपका दिमाग मंत्र जप से भटकता भी है तो अपनी आवाज सुनकर आप केंद्रित हो सकें। फिर भी अगर आपका दिमाग भटकता है तो इस बात को आराम से लें, खुद पर दबाव न डालें। इसके बदले आप इसे स्वीकार करें और अपना ध्यान मंत्र की तरफ लगाने की कोशिश करें।
- ये खत्म करने के बाद कुछ गहरी सांस लें और एक क्षण के लिए अपनी भावनाओं के बारे में सोचें और अपनी प्रगति पर ध्यान दें।
- कभी-कभी मरीज धार्मिक जप के बदले अफर्मेशन या सकारात्मक वाक्यों का प्रयोग करते हैं, जैसे –
“मैं दर्द से मुक्त हूं”
“मैं अपने शरीर से दर्द को निकलते हुए महसूस कर सकता हूं”
“मुझे दर्द से मुक्त होना आसान लग रहा है”
“मैं अपने सारे दर्द को जाने दे रहा हूं”
गाइडेड इमेजरी (Guided Imagery)
गाइडेड इमेजरी एक ऐसी तकनीक है जिसमें थेरेपिस्ट मरीज की कल्पनाओं का इस्तेमाल करके उसकी मदद करते हैं, जिसमें मरीज को किसी जगह, इंसान या भूतकाल के किसी खूबसूरत लम्हों को याद करा के उसे खुशी, शांति और सुकून का अनुभव कराते हैं।
कैंसर के दर्द से राहत पाने की तकनीक
- इस तकनीक में एक क्रम से सभी इंद्रियों (देखना, सूंघना, सुनना, स्वाद लगना और छूना) का इस्तेमाल करके एक मानसिक तस्वीर तैयार की जाती है।
- एक शांत जगह खोज कर खुद को आराम दें। अपनी आंखें बंद करें और ध्यान करने के लिए कुछ गहरी सांस खींच कर शांत रहें। धीरे-धीरे कल्पना करें कि आप एक खूबसूरत जगह पर हैं। यह कल्पना करें कि आप शांत और आराम से हैं। साथ ही यह भी सोचें कि आप मुस्कुरा रहे हैं, खुश हैं और एक अच्छा समय व्यतीत कर रहे हैं।
- उदाहरण के लिए, अगर आप किसी समंदर के किनारे की कल्पना कर रहे हैं तो सूरज की गर्माहट को अपनी त्वचा पर महसूस करें, समंदर की महक और स्वाद को महसूस करें और लहरों की सुंदर ध्वनि को सुनने की कल्पना करें।
- अलग-अलग इन्द्रियों पर अपना ध्यान केंद्रित करने की कोशिश करें। खुद को याद दिलाएं कि दैनिक क्रियाओं के दौरान आप अपनी भावनाएं खुद बना सकते हैं। जब आपको आराम महसूस होने लगे तो धीरे-धीरे अपनी आंखें खोलें और कुछ देर शांति से बैठें। अगर जरूरत महसूस हो तो थोड़ी स्ट्रेचिंग कर लें।
- एक दूसरा तरीका इसका यह हो सकता है कि गहरी सांस लेते समय अपने दर्द की तरफ ध्यान दें। आपको कुछ बदलना नहीं है। बस इतना ध्यान दें कि आपका दर्द किस जगह पर स्थित है।
- धीरे-धीरे सांस लेते रहें। सांस अंदर लें और बाहर छोड़ें। अपने दर्द की तरफ शांति और निष्क्रिय भाव से ध्यान दें। नोट करें कि आपका शरीर कैसा महसूस कर रहा है। अगर आपको दर्द महसूस होता है तो कुछ मिनट के लिए खुद को समझाएं कि…”मैं खुद को स्वीकार करता हूं… मैं ये दर्द स्वीकार करता हूं…मैं इसे स्वीकार करता हूं…” बस एक गहरी सांस लें और दर्द की तरफ ध्यान देकर इसे स्वीकार करने की कोशिश करें।
ये कुछ ऐसे तकनीक हैं जिसे कोई भी कैंसर के मरीज प्रैक्टिस कर सकते हैं और इसे करने का कोई सही तरीका नहीं है। ये कल्पना और एकाग्रता को महसूस करने की आपकी अपनी क्षमता है। प्रैक्टिस के साथ आप इसमें बेहतर होते जाते हैं।