लिम्फोमा एक ऐसा कैंसर है जो सबसे पहले इम्यून सिस्टम के लिम्फोसाइट सेल्स में फैलता है। ये कोशिकाएं इंफेक्शन से लड़ती हैं और रोग प्रतिरोधक क्षमता को मजबूत करती हैं। ये कैंसर ज्यादातर लिम्फ नोड्स या अन्य लिम्फ ऊतकों में शुरू होते हैं, जैसे टॉन्सिल या थाइमस। वे बोन मैरो और अन्य अंगों को भी प्रभावित कर सकते हैं। इसमें लिम्फोसाइट्स पूरी तरह बदल जाते हैं और वे तेजी से बढ़ने लगते हैं। आज हम अपोलो मुंबई के हेमाटोलॉजिस्ट पुनीत जैन से लिम्फोमा से जुड़े कुछ सवालों के बारे में जानेंगे।
लिम्फोमा एक प्रकार का खून का कैंसर है, जब ये लिम्फ नोडस में फैल जाता है। हमारे शरीर में मौजूद लिम्फ में जब ये कैंसर फैल जाता है तो इसे लिम्फोमा कहते हैं। ये कैंसर होने पर मरीज़ को बहुत ज्यादा लंबे समय तक बुखार, गले और बगल में गांठे महसूस होती है और वज़न काफी जल्दी गिरने लग जाता है।
लिम्फोमा के प्रकार की बात करें तो इनमें दो मुख्य प्रकार होते हैं, नॉन-हॉजकिन और हॉजकिन। नॉन-हॉजकिन लिम्फोमा में बी-सेल और टी सेल शामिल होते हैं, जो कि किशोरों और ज्यादा उम्र के लोगों को प्रभावित करता है। डिफ्यूज लार्ज बी-सेल लिम्फोमा काफी आम है, ये 50 साल की उम्र में देखा जा सकता है। टी-सेल लिम्फोमा के मामले भी ज्यादा उम्र के लोगों दिखाई देते हैं। वहीं हॉजकिन बच्चों और बड़े दोनों को प्रभावित करता है। किशोरों में नॉन-हॉजकिन और हॉजकिन दोनों के मामले देखे जा सकते हैं।
लिम्फोमा के लक्षणों की अगर हम बात करें तो यदि बिना किसी बड़ी बीमारी के लंबे वक्त तक बुखार रहे तो आपको तुरंत किसी अच्छे हेमाटोलॉजिस्ट को दिखाने की ज़रूरत है। गले या बगल के आस-पास गांठे, वज़न का घटना और बहुत ज्यादा पसीना आना इसके मुख्य लक्षण हैं।
लिम्फोमा के किसी भी तरह के लक्षण दिखने पर सबसे पहले चिकित्सक से जांच ज़रूर कराएं। इसके साथ ही यदि आपका पारिवारिक कैंसर का इतिहास है तो बहुत ज़रूरी है कि आप साल में एक बार अपने शरीर की जांच यानी कि फुल स्क्रीनिंग ज़रूर कराएं ताकि किसी भी तरह की परेशानी को बढ़ने से रोका जा सके।
लिम्फोमा के निदान में कई तरह के स्कैन, पेेट सीटी स्कैन, लिम्फ नोड बायोप्सी, बोन मैरो बायोप्सी, इम्युनोहिस्टोकैमिस्ट्री और सोनोग्राफी की मदद से कैंसर कहां-कहां फैला है इसका पता लगाया जा सकता है। लिम्फोमा का उपचार उसकी स्टेज और शरीर के भाग पर निर्भर करता है। हॉजकिन लिम्फोमा में आमतौर पर कीमोथेरेपी दी जाती है। नॉन-हॉजकिन के बी-सेल लिम्फोमा में इम्यूनोथेरेपी का इस्तेमाल किया जाता है। कई बार कैंसर के ज्यादा फैल जाने पर बोन मैरो ट्रांसप्लांट भी किया जाता है।
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