इसमें कोई आश्चर्य की बात नहीं है कि फेफड़ों के कैंसर और कई अन्य बीमारियों के विकास में बाहरी वायु प्रदूषण का काफी बडा योगदान है। ग्लोबोकेन 2018 की रिपोर्ट के अनुसार, भारत में हर साल लगभग 63000 मौतों के साथ फेफड़ों के कैंसर के लगभग 67000 नए मामले सामने आते हैं।
यह पुरुषों में दूसरा सबसे अधिक होने वाला कैंसर है और महिलाओं में चौथा। इंटरनेशनल एजेंसी फॉर रिसर्च ऑन कैंसर कार्सिनोजेनिक के रूप में बाहरी प्रदूषण की घोषणा करता है।
बाहरी प्रदूषण में हानिकारक और जहरीले रसायन होते हैं जो जीवाश्म ईंधन के दहन के उत्पाद होते हैं। इसमें ओजोन, पार्टिकुलेट मैटर, सल्फर डाइऑक्साइड, कार्बन मोनोऑक्साइड और पॉलीसाइक्लिक एरोमैटिक हाइड्रोकार्बन और ऑटोमोबाइल निकास से निकेल शामिल हैं। बाहरी प्रदूषण के कुछ घटक प्राकृतिक प्रक्रियाओं के परिणाम भी हैं।
चीन में किए गए एक अध्ययन से पता चलता है कि महिलाओं के बीच फेफड़ों के कैंसर की घटना में इनडोर वायु प्रदूषण का भी महत्वपूर्ण योगदान पाया गया है। इसलिए अच्छी इनडोर वायु गुणवत्ता सुनिश्चित करना बहुत जरूरी है।
शहरीकरण, औद्योगीकरण के फलस्वरूप प्रदूषण में वृद्धि हुई है। वाहनों के उत्सर्जन, निर्माण और विकासात्मक कार्य अपशिष्ट, कारखानों से निकलने वाले धुएं, डंपिंग ग्राउंड और ईंधन के जलने से पर्यावरणीय खतरों का बड़ा योगदान है।
हम लगातार प्रदूषित हवा में सांस ले रहे हैं। श्वसन संबंधी बीमारियां असामान्य नहीं हैं जो हवा की गुणवत्ता को शहरी क्षेत्रों में व्याप्त करती हैं। पार्टिकुलेट मैटर इन बीमारियों के उच्च जोखिम वाले कारकों में से एक है। इसमें छोटे ठोस या तरल कणों का मिश्रण होता है जो हवा में मौजूद एसिड और अन्य कार्बनिक यौगिकों से बने होते हैं।
जब से छोटे कण सांस के द्वारा अंदर जाते हैं तो फेफड़ों के ऊतकों में फँस जाते हैं। फेफड़ों के ऊतकों के साथ निकट संपर्क से इसकी कोशिकाओं के डीएनए में पुरानी सूजन और उत्परिवर्तन हो सकता है। इन दोनों तंत्रों से फेफड़ों में कोशिकाओं की असामान्य वृद्धि होने की संभावना है।
अध्ययनों की रिपोर्ट की मानें तो विकसित देशों की तुलना में कम और मध्यम आय वाले देशों में रहने वाले लोगों में फेफड़ों के कैंसर के मामले अधिक आते हैं, जो प्रदूषण के स्तर को बेहतर तरीके से नियंत्रित कर सकते हैं। इसके अलावा, ग्रामीण क्षेत्रों की तुलना में शहरी क्षेत्रों में फेफड़ों के कैंसर की दर अधिक है। एक अन्य पर्यवेशण में वायु प्रदूषण और एडेनोकार्सिनोमा (धूम्रपान न करने वालों में) और स्क्वैमस सेल कार्सिनोमा (धूम्रपान करने वालों में आम) की घटनाओं के बीच एक कड़ी का खुलासा हुआ है। रिपोर्ट हवा में पार्टिकुलेट मैटर 2.5 के स्तर में वृद्धि का भी संकेत देती है।
सरकारी एजेंसियां नियमित रूप से इन वायु गुणवत्ता स्तरों को अपडेट करती हैं। कुछ न करने से बेहतर है, स्थिति को सुधारने के लिए कुछ कदम उठाना। जो योगदान आप अपनी तरफ से कर सकते हैं, वह हैंः-
वायु प्रदूषण में खाद्य, फैशन और लोकोमोटिव उद्योग का सबसे अधिक योगदान है। वायु प्रदूषण कोई ऐसा मुद्दा नहीं है जिसकी चर्चा स्कूल की कक्षा या किसी अन्य महाद्वीप में पर्यावरण शिखर सम्मेलन में की जाती है। यह उतना ही जरूरी है जितना कि हमारे लिए सांस लेना। तो सांस की बीमारियों के जोखिम को कम करने के लिए व्यक्तिगत और सामूहिक दोनों प्रयास करना हमारा कर्तव्य है। हमें समस्या की बारीकियों को समझना चाहिए और ऐसी जीवनशैली का चुनाव करना चाहिए जो जीवन को टिकाऊ बना सकेे।
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