पूरे भारत में कैंसर जैसी घातक बीमारी को हराने वाले जयंत पहले ऐसे भारतीय हैं, जिन्हें एक नहीं, दो नहीं बल्कि छह बार कैंसर हो चुका है। जयंत पिछले लगभग 8 साल कैंसर जैसी बीमारी से लड़ने में लगा चुके हैं।
कैंसर का सफर
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सर्जरी के दो हफ्ते बाद, सीमा की कीमोथेरेपी शुरू हुई। उन्हें एड्रियामाइसिन (Adriamycin), और साइक्लोफॉस्फेमाइड (Cyclophosphamide) (AC)2, डोज का संयोजन आहार निर्धारित किया गया था। उसके बाद टेक्सेन की चार साइकल थी।
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पेशे से सर्टिफाइड फिजिओथेरपिस्ट रह चुकीए जिंनिया को साल 2020 में ब्रेस्ट कैंसर जैसी बीमारी से जूझना पड़ा। अक्टूबर के महीने में जाकर उनकी लम्पेक्टोमी की गई, जहां से ब्रेस्ट कैंसर होने की बात सामने आई। जो कि इनवेसिव डक्टल कार्सिनोमा ट्रिपल नेगेटिव था। इस ब्लॉग में जिनिया अपने कैंसर के सफर के बारे में बात कर रही हैं।
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20 साल की उम्र में एक जूनियर ट्रेनी इंजीनियर के तौर पर काम करने वाली मीनाक्षी अपने हर वीकएंड को काफी बेहतर तरीके से एंजाय करती हैं। वह अपनी लाइफ में काफी खुश थी और उनके परिवार को उन पर गर्व था। लेकिन साल 2019 में पलक झपकते ही उनके जीवन में सब कुछ बदल गया। इस ब्लाॅग में हम मीनाक्षी के कैंसर के सफर के बारे में बात बताएंगे।
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साल 2016 में झारखंड के हजारीबाग की दुर्गावती गुप्ता को अपने दाहिने स्तन में कैंसर होने का पता चला। जहां पहली बार उन्हें सही इलाज न मिलने से उनका कैंसर और बढ़ गया। लगभग एक साल बाद दुर्गावती को पैरालाइज अटैक आया जिसमें उनके आधे शरीर ने काम करना बंद कर दिया। इस ब्लॉग में हम उनके कैंसर के इस सफर के बारे में जानेंगे।
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इस ब्लाॅग में हमने वंदना महाजन के कैंसर के बारे में बताया है। इस ब्लाॅग में हम वंदना के थायराइड कैंसर के सफर के बारे में जानेंगे। हम जानेंगे कि कैसे उन्हें इस कैंसर के बारे में पता चला, इसका इलाज कैसे हुआ और इस दौरान उनके सामने क्या-क्या चुनौतियां आई।
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कैंसर अपने आप में एक डरावना शब्द है, लेकिन इस बात में भी दो राय नहीं है कि आज इस बीमारी को हराने के लिए मरीजों को बेहतर इलाज मिल पाता है। इसलिए कैंसर से डरने की नहीं इसके प्रति जागरूक रहने की जरूरत है।
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कैंसर के 30-50 प्रतिशत मामलों को रोका जा सकता है। इसके लिए हमें अपनी जीवन शैली में बदलाव करने की जरूरत है, जिसमें अधिक मात्रा में फल और सब्जियों का सेवन, नियमित रूप से व्यायाम, तंबाकू के सेवन से बचना और शराब के उपयोग को सीमित करना है।
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आपका कैंसर का रोगी अलग से ऐसा नहीं है। आप पाएंगे कि सभी कैंसर रोगी और कैंसर से बचे लोग उनके उपचार के दौरान और बाद में एक समान प्रतिक्रिया देते हैं।
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कैंसर का सफर एक मरीज के साथ-साथ उसके परिवार वालों के लिए भी काफी चुनौती पूर्ण होता है। कैंसर की बीमारी परिवार के लिए एक आपदा तब बन जाती है, जब परिवार आर्थिक रूप से मजबूत न हो।