सोनाली बेंद्रे और इरफान खान जैसे कई सेलेब्स हैं, जो विदेशों में कैंसर जैसी घातक बीमारी का इलाज करा चुके हैं। इस ब्लाॅग में हम आपको बताएंगे कि भारतीस सेलेब्स का विदेश में इलाज क्यों कराते हैं। लोगों में यह धारणा बनी हुई है कि पैसा होने के चलते वह लोग विदेशों में अपना इलाज करा पाते हैं।
आपकी कहानियां
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साल 2016 में झारखंड के हजारीबाग की दुर्गावती गुप्ता को अपने दाहिने स्तन में कैंसर होने का पता चला। जहां पहली बार उन्हें सही इलाज न मिलने से उनका कैंसर और बढ़ गया। लगभग एक साल बाद दुर्गावती को पैरालाइज अटैक आया जिसमें उनके आधे शरीर ने काम करना बंद कर दिया। इस ब्लॉग में हम उनके कैंसर के इस सफर के बारे में जानेंगे।
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महज 30 साल की उम्र में अर्चना चैहान को दो साल के भीतर कैंसर जैसी घातक बीमारी का दो बार सामना करना पडा। कोरोना काल के बीच दूसरी बार कैंसर का पता चलने पर वह इस माहामारी वाली बीमारी से भी नहीं बच पाई। अर्चना चैहान के इस ब्लाॅग में हम उनके कैंसर के सफर के बारे में जानेंगे।
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इस ब्लाॅग में हम स्तन कैंसर के सफर के बारे में जानेंगे, जहां मुंबई के वासावी के रहने वाले परेश जी शाह की मां को कोरोना काल में कंधे में दर्द के बाद स्तन कैंसर के बारे में पता चला। कैंसर के सफर में इलाज के बाद वह काफी हद तक रिकवर हो पाई हैं।
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कैंसर की घटनाओं का राष्ट्रीय औसत प्रति लाख आबादी पर 80-110 मामले हैं, यह संख्या उत्तर पूर्व में प्रति 150-200 मामलों के बीच भिन्न होती है। इस क्षेत्र में, विशिष्ट क्षेत्र जैसे आइजोल (मिजोरम) और पापम्परे (अरुणाचल प्रदेश) ने इस क्षेत्रीय बेल्ट के भीतर उच्चतम, आयु-समायोजित कैंसर की घटनाओं की रिपोर्ट है।
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कैंसर का सफर: हौसले के तरकश में उड़ान भर्ती हुई मैं (Vandana Mahajan thyroid cancer cancer story)
by Team Oncoइस ब्लाॅग में हमने वंदना महाजन के कैंसर के बारे में बताया है। इस ब्लाॅग में हम वंदना के थायराइड कैंसर के सफर के बारे में जानेंगे। हम जानेंगे कि कैसे उन्हें इस कैंसर के बारे में पता चला, इसका इलाज कैसे हुआ और इस दौरान उनके सामने क्या-क्या चुनौतियां आई।
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किरण खेर मल्टीपल मायलोमा से पीड़ित हैं जो ब्लड कैंसर का एक प्रकार है। खबर है कि पिछले साल 11 नवंबर को उन्हें हाथ में फ्रैक्चर हुआ था। जिसके इलाज के दौरान उनमें मल्टीपल माइलोमा के शुरुआती लक्षण पाए गए थे। यह बीमारी उनके बाएं हाथ से दाहिने कंधे तक फैल गई है। हालांकि, उनका इलाज अभी जारी है।
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कैंसर के निदान के बारे में सोचने का सही तरीका क्या है? वैसे कोई फर्क नहीं पड़ता, वह किसी भी तरह से सोचे, आगे कोई आशा की किरण नहीं दिखाई देती।
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कैंसर अपने आप में एक डरावना शब्द है, लेकिन इस बात में भी दो राय नहीं है कि आज इस बीमारी को हराने के लिए मरीजों को बेहतर इलाज मिल पाता है। इसलिए कैंसर से डरने की नहीं इसके प्रति जागरूक रहने की जरूरत है।
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आपका कैंसर का रोगी अलग से ऐसा नहीं है। आप पाएंगे कि सभी कैंसर रोगी और कैंसर से बचे लोग उनके उपचार के दौरान और बाद में एक समान प्रतिक्रिया देते हैं।